हम सभी दौड़ते रहते हैं, मंज़िल की ओर,
पर असल में, जादू तो था सफ़र के इस दौर में, मुझसे दूर।
वो रास्ते की मस्ती, वो हंसी के पल,
हमें नहीं दिखते, क्योंकि हम बस चलते जाते हैं छलकते हलचल।
मंज़िल की ओर बढ़ते हुए, हम भूल जाते हैं,
जिंदगी के हर मोड़ में जो खुशियाँ छुपी हैं,
हम सोचते रहते हैं, "जल्दी पहुँच जाएं",
पर असल में, रास्ते में ही है वो हंसी का राज़, जो हँसी छोड़ जाएं।
कभी-कभी रुककर, देखो वो झील की शांति,
या फिर पेड़ की छांव में बिताओ थोड़ी सी राहत।
क्योंकि सफ़र की असली मस्ती, मंज़िल में नहीं बसी,
वो तो रास्ते में ही है, जब हम ज़िंदगी की रंगीनियों में खोई रहती हैं।
तो क्यों न इस सफ़र को जी लें, हर कदम पे नाचते चलें,
क्योंकि मंज़िल नहीं, ये रास्ते ही हैं जो सच में हमें खुशियाँ दे डालें! 🎉