Open Sex Series – Part 19


“Bisexuality – बीच के उस पुल की कहानी, जिसे सब पार करना चाहते हैं मगर नाम नहीं देना चाहते।”

> “Sexuality कोई सीधी रेखा नहीं है—
ये एक स्पेक्ट्रम है,
जिसमें दिल किसी भी ओर झुक सकता है—
बिना किसी लेबल, डर या पापबोध के।”




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मुंबई की वो शाम – जब मेरी सोच बदल गई

वो शाम मुंबई के अंधेरी वेस्ट की एक book café में बीती थी।
मैं एक documentary research कर रहा था “Modern Relationships in Metro India” पर।

वहीं मेरी मुलाक़ात हुई राहुल और अवनी से।(नाम बदले गए हैं)
ऊपरी तौर पर एक straight couple लगने वाला ये जोड़ा मुझे बेहद normal और खुश दिखा।

बातों-बातों में राहुल ने मुझे धीरे से कहा:

> “मैं bisexual हूं। और अवनी जानती है।”



मैं चौंका, लेकिन अवनी मुस्कुरा रही थी।

> “जब हम मिले, उसने पहले हफ्ते में ही बता दिया था।
और पता है, मैंने इसे weakness नहीं, उसकी ईमानदारी माना।”




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Bisexuality: एक Dual World की यात्रा

Bisexuality का मतलब है—
ऐसे लोग जो स्त्री और पुरुष दोनों की ओर यौन या भावनात्मक रूप से आकर्षित हो सकते हैं।

लेकिन असल में ये परिभाषा इतनी सीमित नहीं—
क्योंकि कई बार attraction शरीर से ज़्यादा ऊर्जा से होता है।


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राहुल की कहानी: "कन्फेशन और कन्फ्यूज़न"

राहुल ने बताया कि कॉलेज के दिनों में वो एक लड़के की ओर खिंचा था।

> “पहले तो खुद से डर गया था। लगा कहीं गड़बड़ तो नहीं?”
“फिर जब एक लड़की के साथ भी वही जुड़ाव महसूस हुआ,
तब जाकर समझ आया— मैं दोनों से जुड़ सकता हूं।”



ये समझना जितना आसान लगता है,
उतना ही मुश्किल होता है इसे स्वीकारना—
खुद से भी और समाज से भी।


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Avni की सोच – "मेरा पार्टनर कौन है, उसकी चाहत क्या है—मैं ये समझना चाहती हूं, जज नहीं करना"

> “राहुल bisexual है, इससे हमारे रिश्ते पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
बल्कि हमने boundaries, trust, और emotional safety को लेकर
और भी clarity develop की।”



उन्होंने कुछ ground rules तय किए,
खुलकर बातचीत की, और emotional honesty को रखा सबसे ऊपर।


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Osho की दृष्टि – Beyond Gender, Beyond Labels

> “Love is not heterosexual, not homosexual, not bisexual.
Love is just love — pure energy.” — Osho



ओशो ने बार-बार कहा कि
Sexuality एक fluid energy है—
जो शरीरों से नहीं,
आत्माओं की लय से जुड़ती है।

> “कभी पुरुष आकर्षित करेगा, कभी स्त्री—
ये तय करने वाला मन नहीं, तुम्हारा being है।”



पुणे आश्रम में मैंने ऐसे कई seekers देखे—
जो ना ही खुद को male-female की सीमाओं में बाँधते थे,
ना ही अपनी desires को suppress करते थे।


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भारत में Bisexuality – इतिहास, शास्त्र और समकाल

कामसूत्र में ऐसे पात्र और यौन क्रियाएं वर्णित हैं
जहाँ व्यक्ति दोनों लिंगों से यौन सुख लेता है।

पुराणों में भी शिव के Ardhanarishwar रूप में
एक divine bisexuality को दर्शाया गया है—
जहाँ स्त्री और पुरुष दोनों की ऊर्जा एक में समाहित है।

> "न स्त्री न पुरुष, शिव स्वयं काम के पार हैं—
परन्तु उनकी लीला में दोनों का सम्मिलन है।"


कहानी का दूसरा कपल – प्रियंका और सिम्मी (नाम बदले गए हैं)

फिर मैं एक event में मिला दो औरतों से—
प्रियंका और सिम्मी, जो एक couple थीं।
लेकिन twist यह था कि प्रियंका शादीशुदा थी,
और bisexual होने की वजह से अपने पति से भी emotionally जुड़ी थी।

> “मैं दोनों से प्यार करती हूं।
मुझे neither monogamy suits, nor strict labels.”



इस कहानी में दर्द भी था,
confusion भी,
और प्यार की जटिलता भी।


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Bisexual होने का मतलब – Confused होना नहीं है।

समाज आज भी bisexuality को एक “कन्फ्यूज़न” मानता है।
कहते हैं:

> “अरे, तुम तय करो, लड़कों से प्यार है या लड़कियों से!”



मगर सच्चाई यह है—
Bisexuality कोई आधा-अधूरा फेज़ नहीं है।
ये एक पूर्ण यौन और भावनात्मक अनुभव है—
जो दो ध्रुवों को छूता है,
और हर इंसान को खुद को explore करने की आज़ादी देता है।


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एक संदेश: “Love को सीमाओं से मत तोलो”

Bisexual होना कोई rebel होना नहीं—
ये बस अपनी आत्मा की उस लय को पहचानना है
जो कभी स्त्री से, कभी पुरुष से, कभी दोनों से झूम उठती है।


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Open Sex Series – Part 18



"Fetishism – जब ख्वाहिशें आम नहीं होतीं"

> "इंसानी कामनाएं सीधी-सादी नहीं होतीं—
वो अजीब रास्तों से गुज़रती हैं,
किसी के जूतों में, किसी के बालों में,
किसी की चुप्पी में भी छिपा हो सकता है यौन आकर्षण।"




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Fetishism क्या है?

Fetishism एक ऐसी मानसिक-यौन प्रवृत्ति है जिसमें व्यक्ति किसी वस्तु, शारीरिक अंग, या किसी विशिष्ट स्थिति से यौन आकर्षण महसूस करता है, जो आमतौर पर यौन नहीं माने जाते।

उदाहरण के लिए:

किसी को सिर्फ पैर (Feet) देखकर उत्तेजना होती है।

किसी को चमड़े की चीज़ें (Leather, Latex) पहनकर sex करना पसंद है।

किसी को partner को बाँधना (Bondage), रोलप्ले या कंट्रोल करना उत्तेजित करता है।


ये इच्छाएं न तो पागलपन हैं, न बीमारी—
ये बस इंसान की कामना की जटिलताओं का हिस्सा हैं।


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मेरा अनुभव – पुणे के एक क्लास में

मैंने पुणे के एक Tantra-workshop में हिस्सा लिया था, जहाँ लोग अपने भीतर की suppressed इच्छाओं को खुलकर explore कर रहे थे।

वहाँ एक व्यक्ति था— नाम था विवेक।
उसने स्वीकार किया कि उसे सिर्फ तब यौन सुख मिलता है जब कोई उसे जूते पहनकर डाँटे, या उस पर हावी हो।

सुनने में अजीब लगता है?
मगर वो उस वक्त सबसे ईमानदार इंसान लग रहा था।

उसकी आँखों में कोई शर्म नहीं थी,
बस एक राहत —
कि उसने अपनी परतों को उतार फेंका था।


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Fetish के प्रकार:

1. Foot Fetish:
पैरों से यौन आकर्षण


2. Domination/Submissive:
किसी का हुक्म मानना या दूसरों पर हावी होना


3. Roleplay Fetish:
Teacher-student, Doctor-patient जैसे रोलप्ले से उत्तेजना


4. Latex/Leather Fetish:
खास कपड़ों से उत्तेजना


5. Object Fetish:
किसी वस्तु से sexual जुड़ाव (जैसे gloves, socks, etc.)


6. Pain Fetish (Masochism):
दर्द से यौन सुख पाना




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Fetish क्यूँ होते हैं? (Psychology + Science)

Fetish एक तरह का conditioning होता है—
हमारा दिमाग किसी object या स्थिति को यौन सुख से जोड़ देता है।

बचपन या किशोरावस्था में किसी विशिष्ट वस्तु या स्थिति के साथ जब पहली बार यौन उत्तेजना जुड़ी हो—
तो वही चीज़ बार-बार दिमाग में sex से associate होने लगती है।

कुछ वैज्ञानिक इसे brain wiring मानते हैं—
जैसे dopamine release एक unusual trigger से जुड़ जाए।


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Osho का दृष्टिकोण

> "Sexual fantasies repress नहीं करनी चाहिए,
उन्हें समझो, स्वीकारो—
क्योंकि repression से बीमारी पैदा होती है,
और स्वीकृति से ध्यान।"



ओशो ने Fetish को कभी condemn नहीं किया।
बल्कि उन्हें एक inner journey का हिस्सा माना।

उनका मानना था—

> "जो तुम्हारे भीतर छिपा है, उसे रोको मत,
क्योंकि वही repression एक दिन विस्फोट बनेगा।"




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क्या Fetish हमारे पुराने ग्रंथों में भी मिलते हैं?

कामसूत्र में कई ऐसी प्रवृत्तियों का वर्णन है—
जैसे अलग-अलग dress codes, रोलप्ले, प्रेम में प्रतीक्षा का नाटक आदि।

यहां तक कि कंदर्प शास्त्रों में ऐसे अभ्यास भी हैं जहाँ
स्त्री के बालों, उसकी चाल, कपड़ों तक से यौन आकर्षण की बात की गई है।

यानि हमारी संस्कृति ने भी desires को suppress नहीं किया—
उन्हें सौंदर्य और अनुभव के रूप में देखा।


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Fetish – सही या ग़लत?

कोई भी sexual inclination जब तक consensual हो और किसी को हानि न पहुँचा रहा हो,
वह गलत नहीं है।

Fetish तब गड़बड़ होता है जब वो आपकी या दूसरों की आज़ादी, स्वाभाविकता या मनोदशा को नुकसान पहुँचाने लगे।


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एक असली कहानी – "जया और रवि"

मैं एक बार एक कपल से मिला जो मेरी ब्लॉग सीरीज़ पढ़ते थे।
जया ने कहा:

> “रवि को सिर्फ तब arousal होता है जब मैं nurse का रोल निभाती हूं। पहले मुझे गुस्सा आता था। पर जब मैंने उसे समझा, तो पाया— कि उसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। ये बस उसका तरीका है अपने pleasure को पाने का।”



अब वो दोनों हर महीने एक नया रोलप्ले ट्राय करते हैं,
और उनका रिश्ता पहले से ज़्यादा खुला और मज़बूत हो गया है।


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अंत में...

कामना की दुनिया सीधी नहीं होती—
वो टेढ़े रास्तों से होती हुई
कभी जूतों, कभी धड़कनों,
कभी चुप्पियों में आकार लेती है।

Fetish कोई अपराध नहीं—
बल्कि आपकी sexual यात्रा की एक परछाईं है,
जिसे अपनाया जाए तो चेतना का दरवाज़ा खुल सकता है।


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