पर भीतर से वह खाली सा दिखता है।
ना कोई पहचान, ना कोई एहसास,
बस एक ढ़कोसला, झूठी विनम्रता का प्रयास।
मुझे भी कभी लगता था, यह शब्द सही हैं,
पर धीरे-धीरे समझ आया, ये झूठे हैं।
जब माफी बिना समझे, बिना स्वीकारे,
तो वह नफरत, वही दर्द फिर से दहराए।
वे कहते हैं, "मुझे माफ़ करो", पर क्या उन्हें पता है,
किसी के दिल को कितनी चोट दी है उन्होंने वहां।
इन्हें लगता है, माफी से सब कुछ हो जाएगा ठीक,
पर सच्चाई यही है, यह एक छल है बेक़ाम।
जो सच्चे हैं, जो दिल से माफ़ी मांगते हैं,
वे पहले अपना ग़लत किया मानते हैं।
वे कहते हैं, "मैंने यह गलत किया",
और फिर उस गलती को सुधारने का रास्ता दिखाते हैं।
मगर जो खाली माफ़ी से बचने की कोशिश करते हैं,
वे बस खुद को बचाने में लगे रहते हैं।
उनका माफ़ी का शब्द, एक दांव होता है,
जो सामने वाले को भ्रमित करने का खेल होता है।
मुझे अब पता चल चुका है, इन झूठी माफ़ियों को पहचानो,
क्योंकि ये सिर्फ एक खेल होते हैं, जो तुमसे क़ीमत चुकवाते हैं।
सच्ची माफी, हर दिल से आती है,
जो ग़लती से सीखा है, वही उसे सही बनाती है।
अब मैं जानता हूं, जो मुझे माफ़ी कहें,
वह पहले अपनी गलती को समझे और माने।
तभी वह माफी सही होती है, दिल से निकलती है,
वरना वह सिर्फ एक ढ़कोसला बनकर रह जाती है।