सकारात्मकता का सृजन: ओशो की दृष्टि से एक कहानी


हम सभी के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं, जब चुनौतियाँ पहाड़ जैसी लगती हैं। लेकिन इन्हीं चुनौतियों के बीच कहीं न कहीं, आशा और सकारात्मकता का एक दीप जलता है। ओशो ने हमें सिखाया कि जीवन की हर कठिनाई के भीतर एक अवसर छिपा होता है।  

ओशो की बात याद आती है—"अंधकार से मत लड़ो, बस एक दीप जलाओ।"  

यह बात एक छोटी कहानी से और भी स्पष्ट होती है:

**कहानी: दो भाइयों की सोच**  

एक बार दो भाई थे। दोनों का बचपन गरीबी और संघर्ष में बीता। बड़े भाई ने जीवन की कठिनाइयों को देखकर सोचा, "जीवन में कुछ नहीं रखा है, सब बेकार है।" उसने हार मान ली और अपने जीवन को नकारात्मक सोच में डूबा दिया।  

वहीं छोटे भाई ने वही कठिनाइयाँ देखीं, लेकिन उसकी सोच अलग थी। उसने सोचा, "अगर मैं इन हालातों में रहकर भी कुछ अच्छा कर सकता हूँ, तो शायद यही मेरी जीत होगी।" वह रोज़ मेहनत करता रहा, सकारात्मकता को अपना मंत्र बनाकर।  

समय बीता, और जहाँ बड़ा भाई अपने ही जीवन से निराश था, वहीं छोटा भाई अपने जीवन में सफलता और संतोष पा चुका था।  

**संस्कृत श्लोक**  
**"यथा दृष्टिः तथा सृष्टिः।"**  
(जैसी आपकी दृष्टि होगी, वैसी ही आपकी सृष्टि होगी।)

यह श्लोक हमें यही सिखाता है कि हमारी सोच ही हमारे जीवन की दिशा तय करती है।  

**ओशो का विचार**  
ओशो कहते हैं, "तुम्हारी सोच ही तुम्हारा संसार बनाती है। अगर तुम सोचो कि जीवन सुंदर है, तो हर ओर तुम्हें सुंदरता ही दिखाई देगी। लेकिन अगर तुम नकारात्मकता को चुनते हो, तो वही तुम्हारी वास्तविकता बन जाएगी।"

इस कहानी में छोटे भाई ने जीवन की चुनौतियों में भी आशा और सकारात्मकता को देखा। यह दृष्टिकोण उसे जीवन में आगे बढ़ने में मदद करता है।  

ओशो हमें यही सिखाते हैं—**अपने मन को विशाल बनाओ**। जीवन की हर परिस्थिति में कुछ नया सीखने और आगे बढ़ने का अवसर खोजो। सकारात्मकता सिर्फ एक सोच नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है।  

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