गहरी रातों की धुप में,

सूरज की किरणों में छुपी,
गहरी रातों की धुप में,
खोया हूँ खुद को खोकर,
समझाना ही होगा मुझे गम का हारा रहकर।

सफर में मिलते हैं अनजान राही,
कभी धूप में, कभी छाँव में खोजते हैं जवाबी,
पर जिस राह में मिले साथी हमारे,
उसी राह में जाना ही होगा, गम का हारा हमें परिपूर्ण बनाकर।

चलते हैं आगे, छोड़ते हैं पीछे,
बिखरे हैं सपने, पिघले हैं आशे,
पर जिस सपने के साथ चलें,
उसे पूरा करना ही होगा, गम का हारा साथ बनाकर।

सूरज की किरणों में छुपी,
गहरी रातों की धुप में,
खोया हूँ खुद को खोकर,
समझाना ही होगा मुझे गम का हारा रहकर।

श्वासों के बीच का मौन

श्वासों के बीच जो मौन है, वहीं छिपा ब्रह्माण्ड का गान है। सांसों के भीतर, शून्य में, आत्मा को मिलता ज्ञान है। अनाहत ध्वनि, जो सुनता है मन, व...