वेदों में शिव

भगवान शिव, भारतीय संस्कृति में एक प्रमुख देवता हैं और उनकी महत्ता और महिमा अत्यधिक है। वे त्रिमूर्ति के एक प्रमुख स्वरूप हैं, जो सृष्टि, स्थिति और संहार का प्रतीक हैं। भगवान शिव को महादेव, नीलकंठ, भैरव, त्रिशूलधारी, नटराज, रुद्र, आदि नामों से भी जाना जाता है। 

ऋग्वेद में, भगवान शिव को रुद्र के रूप में उपलब्ध किया गया है, जो एक शक्तिशाली और दयालु देवता के रूप में प्रस्तुत किया गया है। ऋग्वेद में ऋद्र को शिकार और पशुओं के संरक्षक के रूप में वर्णित किया गया है। उन्हें धनुष, तीर, और बवंडर के साथ जोड़ा गया है, जो उनकी शक्ति और दुष्टता को नष्ट करने की क्षमता को प्रतिनिधित करता है। 
भगवान शिव के बारे में एक विशेष श्लोक जो ऋग्वेद में प्रदर्शित होता है, वह है:

"कैलासशिखरे रम्ये शंकरस्य शुभे गृहे ।
देवतास्तत्र मोदन्ति तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ॥"

अर्थात, "कैलास पर्वत के चारों ओर श्री शंकर के अत्यंत मनोहार घर हैं, वहाँ सभी देवताओं का आनंद होता है। मेरे मन में हमेशा भगवान शिव के संकल्प हों।"

यह श्लोक भगवान शिव के गौरव और महत्त्व को बखूबी व्यक्त करता है और उनकी महिमा की महत्ता को दर्शाता है। इसके साथ ही, यह श्लोक हमें भगवान शिव के ध्यान में लगाने और उनकी कृपा को प्राप्त करने की प्रेरणा देता है।

यजुर्वेद में, भगवान शिव को अज्ञान और अधर्म को नष्ट करने की क्षमता वाला देवता के रूप में वर्णित किया गया है। उन्हें उपजाऊता और लम्बी आयु और समृद्धि प्रदान करने वाले देवता के रूप में भी वर्णित किया गया है। 

अथर्ववेद में, शिव को औषधि और चिकित्सा के देवता के रूप में वर्णित किया गया है, जो शारीरिक और मानसिक रोगों का इलाज कर सकता है। इस वेद में उनकी पूजा का महत्व और उनके पूजन से जुड़े विभिन्न अनुष्ठानों का भी वर्णन है। 

भगवान शिव को एक ही अत्मा में सभी जीवों में एकता का प्रतीक माना जाता है, और उनकी पूजा से हम अपने अंतरात्मा को पहचान सकते हैं। उनके भक्तों के लिए, भगवान शिव के भगवान बनाने का महत्व अत्यंत उच्च होता है और वे उनकी पूजा के द्वारा अपने जीवन में शांति, सुख, और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त क

श्वासों के बीच का मौन

श्वासों के बीच जो मौन है, वहीं छिपा ब्रह्माण्ड का गान है। सांसों के भीतर, शून्य में, आत्मा को मिलता ज्ञान है। अनाहत ध्वनि, जो सुनता है मन, व...