सत्ता और आत्मशक्ति



बदल गए गगन के स्वर, गूँज उठी नयी तरंग,
सत्ता के संग बदल गया, युग का ये अनंग।
राजनीति से दूर जो लगे, वो आकाशिक मंडल,
वो भी चुपके से फुसफुसाए, लेकर नये संकल्प।

आत्मा की शक्ति में जो था, वो दबी हुई जलन,
अब प्रज्वलित हुआ है वो दीप, अंतस की लगन।
हर किसी के मन में जैसे, एक युद्ध है छिड़ा,
विचारों का संग्राम, और भावनाओं का कड़ा।

कुछ ने डर में मौन धारण किया,
कुछ ने स्वतंत्रता के गीत गाए।
जिन्होंने आत्मबल से राह चुनी,
वो नए सूर्य के संग मुस्कुराए।

सत्ता से परे है ये यात्रा, ये आत्मा का संधान,
जो ढूंढे सत्य की राह, वही बनेगा महान।
कदम बढ़ाओ, क्योंकि यही है,
स्वतंत्रता की ओर अंतिम प्रयाण।

– दीपक डोभाल


अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...