दिल्ली की धूप में

पहाड़ों के बीच, उसके घर से दूर,
एक युवक निकला, सपनों की धुंधली छाँव में।
सड़कों की गहराई में, उसने खोजा नया सफर,
अपनी मंजिल की ओर, चलते हुए निकला परवरिश की परिवार से बाहर।

शहरों की भीड़ में, वह खोजा अपना रास्ता,
अपने सपनों की पूर्ति के लिए, किया उसने महनत बेहद तेज।
जीवन की रोशनी में, उसने खोजा अपना आत्मा,
वहां ले वहां, बस खोजते रहे, अपने सपनों की दुनिया नयी।

दिल्ली की धूप में, उसने भीगे अपने सपने,
नये रंग, नयी धधकन, बसे थे हर जगह।
सिखा वहने, जीने का सही अंदाज़,
अपने क़दमों में, लिया उसने हर रास्ते का साथ।

उसकी कविता, उसकी कहानी,
प्यार से रची, नए सपनों की कहानी।
जो शुरुआत थी पहाड़ों की उस धूप में,
आज वह है दिल्ली की धूप में, खिलते हुए खुद के सपनों के संग।

चलो नई दुनिया की ओर,नए सपनों की राह पर।

चलो नई दुनिया की ओर,
नए सपनों की राह पर।
कुछ नया करने का जूनून है,
हर कदम पर नया इतिहास बुनने का है।

रुकना नहीं, नया सफ़र है आगे,
हर मुश्किल को हमें अपने दम पर हराना है।
बड़ा सपना, बड़ा काम है हमारा,
उसे हकीकत में बदलने का आग्रह है हमारा।

नई दुनिया में नया रंग चढ़ाने का,
सोचने की क्षमता को हमें विकसित करने का।
हर कठिनाई को एक नई संभावना में बदलने का,
नया करने का, नया सोचने का, नया जीने का सिखाने का।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...