लगाव या खालीपन?



कभी खुद से पूछा मैंने,
क्या जोड़ा है मैंने रिश्तों का ताना-बाना,
या यह खालीपन का बहाना?
क्या यह स्नेह है, जो मुझे बांधे रखता है,
या बस वक्त का खालीपन मुझे छलता है?

क्या मैं वाकई उनमें रमा हूँ,
या बस अपने शौक से दूर भागा हूँ?
क्यों हर खामोशी में उन्हें ढूंढ़ता हूँ,
क्यों हर अकेले पल में उन्हें सोचता हूँ?

शायद यह मेरा मन ही खेल रचता है,
जहां शौक की जगह लगाव रखता है।
कभी किताबें, कभी संगीत, कभी शब्द,
इनसे जुड़ने का सुख, क्या हो सकता है अधिक गढ़?

मैंने खुद को समझाना शुरू किया,
अपने खालीपन से सामना किया।
एक ब्रश उठाया, कुछ रंग भरे,
कुछ शब्द लिखे, कुछ स्वप्न बुने।

तब जाना, लगाव का बोझ हल्का होने लगा,
और खालीपन, खुद से भरने लगा।
अब मैं उनसे जुड़ता हूँ जो दिल को छूते हैं,
न कि बस उनसे, जो वक्त के खालीपन को भरते हैं।

तो अब सवाल यही है जो मैं खुद से पूछता हूँ,
"क्या यह प्रेम है, या बस एक शौक की कमी है?"
और हर जवाब मुझे थोड़ा और करीब लाता है,
अपने सच, अपने शौक, अपने आनंद से।


दोस्ती का अंत



दोस्ती की राहें कभी सीधी नहीं होतीं,
कभी चुप्प, कभी दूरियाँ, कभी खोई हुई बातें होतीं।
जब जवाबों में देर होने लगे,
समझो कहीं दिल की दूरी बढ़ने लगे।

जवाब पहले जितने थे ताजे और प्यारे,
अब वही जवाब हुए ठंडे और थमे, जैसे कोई जंजीर टूटने से डराए।
बातों में कमी, संवाद में दूरी,
ये चुप्पी ही होती है दोस्ती की असल उलझी हुई कहानी।

कभी दोस्ती शोर से नहीं, बल्कि सन्नाटे से मर जाती है,
जहाँ मिलन से ज्यादा, तन्हाई महसूस होती है।
पर ये दूरी अक्सर चुपके से बढ़ती है,
कोई धमाका नहीं, बस धीरे-धीरे खत्म होती है वो छांव, जो पहले सबको मिलती थी।

लेकिन अगर आप चाहते हैं दोस्ती को फिर से संजीवित करना,
तो समय नहीं, बल्कि दिल की सच्चाई से उसे पहचानो।
इसीलिए, कभी दो कदम और बढ़ाओ,
और दिल से दिल की बातें फिर से समझाओ।

जब तुम अपनों को अपनी अहमियत महसूस कराओ,
तो नीरस समय भी फिर से चमकने लगे।
याद रखो, दोस्ती सिर्फ समय नहीं,
बल्कि हर छोटे इशारे से बनती है, हर एक पहलू को समझने से।


मेरा मध्‍य बिंदु

जब नींद अभी आई नहीं, जागरण विदा हुआ, उस क्षण में मैंने स्वयं को महसूस किया। न सोया था, न जागा था मैं, बस उस मध्‍य बिंदु पर ठहरा था मैं। तन श...