लगाव या खालीपन?



कभी खुद से पूछा मैंने,
क्या जोड़ा है मैंने रिश्तों का ताना-बाना,
या यह खालीपन का बहाना?
क्या यह स्नेह है, जो मुझे बांधे रखता है,
या बस वक्त का खालीपन मुझे छलता है?

क्या मैं वाकई उनमें रमा हूँ,
या बस अपने शौक से दूर भागा हूँ?
क्यों हर खामोशी में उन्हें ढूंढ़ता हूँ,
क्यों हर अकेले पल में उन्हें सोचता हूँ?

शायद यह मेरा मन ही खेल रचता है,
जहां शौक की जगह लगाव रखता है।
कभी किताबें, कभी संगीत, कभी शब्द,
इनसे जुड़ने का सुख, क्या हो सकता है अधिक गढ़?

मैंने खुद को समझाना शुरू किया,
अपने खालीपन से सामना किया।
एक ब्रश उठाया, कुछ रंग भरे,
कुछ शब्द लिखे, कुछ स्वप्न बुने।

तब जाना, लगाव का बोझ हल्का होने लगा,
और खालीपन, खुद से भरने लगा।
अब मैं उनसे जुड़ता हूँ जो दिल को छूते हैं,
न कि बस उनसे, जो वक्त के खालीपन को भरते हैं।

तो अब सवाल यही है जो मैं खुद से पूछता हूँ,
"क्या यह प्रेम है, या बस एक शौक की कमी है?"
और हर जवाब मुझे थोड़ा और करीब लाता है,
अपने सच, अपने शौक, अपने आनंद से।


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