संपन्नता का मूल—स्वयं पर विश्वास



संपन्नता का बीज वहीं पनपता है,
जहां विश्वास की मिट्टी होती है।
स्वयं पर भरोसा,
सबसे पहली सीढ़ी है उस शिखर की,
जहां जीवन अपनी पूर्णता में खिलता है।

अगर तुम अपने आप पर यकीन नहीं करोगे,
तो कोई सपना आकार नहीं लेगा।
हर उपलब्धि, हर समृद्धि,
तुम्हारे भीतर के विश्वास से जन्म लेती है।

"आत्मविश्वासः शक्तिः।"
(आत्मविश्वास ही शक्ति है।)

जब तुम अपने भीतर की शक्ति को पहचानोगे,
तो सृष्टि भी तुम्हारा साथ देगी।
कठिनाइयां, अवसर बन जाएंगी।
अभाव, समृद्धि का द्वार खोल देगा।

तुम्हारी सोच,
तुम्हारी वास्तविकता का निर्माण करती है।
इसलिए अपने भीतर के संदेह को मिटाओ,
और उस विश्वास को जगह दो,
जो तुम्हें हर लक्ष्य तक पहुंचा सके।

संपन्नता बाहरी नहीं,
यह तुम्हारे आत्मा का विस्तार है।
और इसका आरंभ वहीं से होता है,
जहां तुम स्वयं को पूरी तरह अपनाते हो।


लेखनी - जो स्वयं लिखती है

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