नारी



घर से बाहर नही जा सकती है नारी

पुरूषों का ही ये अधिकार है

घर पर लाकर बसा दी जाती है नारी

नही फांद सकती वो चार दिवारी


जो फांदे वो तो देनी पड़ती है उसे अग्नी परीक्षा

इस अग्नी की ज्वाला में कब से जल रही है नारी

केवल वो देह ही नहीं, उसमे प्राण भी है

केवल भोग का सामान ही नहीं,

उसमें स्वाभिमान भी है


पुरुष अगर कल, तो नारी आज है,

नारी से ही जुड़े देश और समाज है

नारी ही बेटी है बहन है नारी ही बीवी और मां है

नारी ही समर्पणसेवा और त्याग है


फिर क्यों सहती  घुट-घुट के अपमान ये नारी,

आंखो को सेकने के लिए दिवार पर टंगी है बेचारी

हर ओर दिखती इसकी बेबसी और लाचारी

क्यों कदम-कदम पर हो जाती कुर्बान है नारी

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...