Wednesday 17 April 2013

नारी



घर से बाहर नही जा सकती है नारी

पुरूषों का ही ये अधिकार है

घर पर लाकर बसा दी जाती है नारी

नही फांद सकती वो चार दिवारी


जो फांदे वो तो देनी पड़ती है उसे अग्नी परीक्षा

इस अग्नी की ज्वाला में कब से जल रही है नारी

केवल वो देह ही नहीं, उसमे प्राण भी है

केवल भोग का सामान ही नहीं,

उसमें स्वाभिमान भी है


पुरुष अगर कल, तो नारी आज है,

नारी से ही जुड़े देश और समाज है

नारी ही बेटी है बहन है नारी ही बीवी और मां है

नारी ही समर्पणसेवा और त्याग है


फिर क्यों सहती  घुट-घुट के अपमान ये नारी,

आंखो को सेकने के लिए दिवार पर टंगी है बेचारी

हर ओर दिखती इसकी बेबसी और लाचारी

क्यों कदम-कदम पर हो जाती कुर्बान है नारी

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