गिरा था जोर से, धूल में समा गया,
फेल का तमाचा था, पूरा लहराया।
पर मन में आया, एक बात बड़ी खास,
"अबकी बार, भाई, नहीं करनी कोई बकवास!"
रुथलेस होकर चल, न आधा-अधूरा काम,
जो भी करना है, करना होगा पूरे दाम।
चाहे सामने हो पहाड़, या हो समंदर,
इस बार तोड़ देंगे हर पुराना पिंजर।
कहानी का हीरो हूं, कोई बैकग्राउंड नहीं,
खुद का विलेन भी हूं, पर स्क्रिप्ट है मेरी सही।
गोल्स हैं बड़े, पर हौसला उससे बड़ा,
इस बार न रुकूंगा, चाहे कितनी हो सजा।
प्लानिंग हो पक्की, और फोकस हो तीखा,
कहीं दिखे आलस, तो मारूं उसे चीखा।
न खैर मांगू, न राहत का सहारा,
खुद का द्रोणाचार्य हूं, खुद से ही सारा।
गिरा था तो क्या, अब खड़ा हो रहा हूं,
हवा के खिलाफ, एक तूफान बन रहा हूं।
रुथलेस होना, यही मंत्र है मेरा,
आधा-अधूरा काम अब लगेगा फेरा।
तो दोस्तों, सीख लो इस कविता से बात,
फेल से डरो मत, ये है जीत का प्रजात।
गिरो, उठो, और फिर बनो शानदार,
इस बार बनो वो जो कहे, "वेल डन, सरदार!"