रिश्तों की सच्चाई



मैंने देखा है,
कई बार रिश्तों में कुछ ऐसा होता है,
जहाँ प्यार एक लहर की तरह आता है,
फिर कुछ समय बाद रुक जाता है।
कभी लगता है,
क्या यह सिर्फ एक प्रवृत्ति है,
जहाँ प्यार की शुरुआत और उसकी समाप्ति
बस एक झटके से तय हो जाती है?

कई बार लगता है,
क्या जब एक औरत खुद को पूरी तरह समर्पित करती है,
तो क्या वह अपनी पहचान खो देती है?
क्या उसे खुद को तोड़ने की कीमत पर,
रिश्ते को बनाये रखना चाहिए?
क्या वह उन शब्दों को सुनकर
अपने दर्द को नजरअंदाज करती है?
क्या वह फिर भी लौटती है,
जो उसे बार-बार तोड़ता है?

समझ नहीं आता,
क्यों कुछ औरतें अपनी कमियों को स्वीकार कर
अक्सर उन्हीं लोगों के पास लौट आती हैं,
जो उनके साथ न्याय नहीं करते।
क्या वे सचमुच उस रोशनी को देखती हैं,
या फिर सिर्फ खुद को एक चक्रव्यूह में फंसा हुआ पाती हैं?

मैंने खुद से पूछा,
क्या रिश्तों में स्थिरता और प्यार सचमुच महत्वपूर्ण है,
या फिर यह सिर्फ एक भ्रम है,
जो हम खुद को दिखाते हैं?
क्या हमें अपनी खुद की ताकत और पहचान
रिश्तों से ज्यादा मायने रखनी चाहिए?

आखिरकार,
मैं समझता हूँ कि प्यार सच्चा होता है,
जब वह खुद से शुरू होता है,
जब हम खुद से प्यार करते हैं,
तब ही हम दूसरों से बिना शर्त प्यार कर सकते हैं।
रिश्ते टूटते हैं,
लेकिन अगर हम खुद को पहचानते हैं,
तो हम फिर से खड़े हो सकते हैं,
बिना किसी के सहारे के।


नारी का शरीर: संघर्ष और सौंदर्य


नारी के शरीर को जन्म से ही नफरत सिखाई जाती है। उसे यह सिखाया जाता है कि उसका शरीर शर्मनाक, भयावह और घिनौना है। समाज नारी को या तो अतिशय कामुकता में धकेलता है या फिर औपनिवेशिक दमन में। यह पूरी दुनिया नारी रूप का अपमान करती है, जिसके कारण यह स्वयं ही मर रही है।

#### नारी के प्रति समाज का दृष्टिकोण

आज की दुनिया में नारी के शरीर को लेकर अनेक प्रकार की मिथ्याएं फैली हुई हैं। जैसे ही एक बच्ची का जन्म होता है, उसे यह बताया जाता है कि उसे अपने शरीर को ढक कर रखना चाहिए। उसकी मासूमियत को समाज की विकृत दृष्टि से बचाने के लिए अनेक प्रकार की बंदिशें लगाई जाती हैं। 

#### अतिशय कामुकता और दमन

समाज नारी को दो ध्रुवों में विभाजित करता है। एक ओर उसे अतिशय कामुकता की ओर धकेला जाता है, जहां उसका शरीर केवल एक वस्तु के रूप में देखा जाता है। दूसरी ओर उसे दमन के कठोर बंधनों में जकड़ा जाता है, जहां उसकी स्वतंत्रता और स्वाभाविकता को नकारा जाता है। यह द्वंद्व नारी के आत्मसम्मान और स्वाभिमान को चोट पहुंचाता है।

#### संस्कृत श्लोक

"या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"

इस श्लोक में नारी के मातृ रूप की वंदना की गई है। नारी केवल जन्मदात्री नहीं है, वह सृजन की स्रोत है। 

#### हिंदी कविता

"नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में॥" 

यह कविता नारी के प्रति आदर और सम्मान की भावना व्यक्त करती है। 

#### नारी का महत्त्व

नारी का शरीर केवल एक भौतिक वस्तु नहीं है, वह आत्मा का निवास है। नारी के रूप में शक्ति, ज्ञान और करुणा की प्रतीक है। समाज को चाहिए कि वह नारी के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदले और उसे सम्मान दे। 

#### निष्कर्ष

इस दुनिया को अपनी सोच बदलनी होगी। नारी के शरीर को अपमानित करना स्वयं को अपमानित करने के समान है। जब तक हम नारी के प्रति अपने दृष्टिकोण को नहीं बदलेंगे, तब तक यह संसार जीवित नहीं रहेगा। नारी के शरीर का सम्मान करना, उसकी आत्मा का सम्मान करना है।

"नारी का सम्मान करो, यही सच्ची पूजा है।"

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...