नारी के शरीर को जन्म से ही नफरत सिखाई जाती है। उसे यह सिखाया जाता है कि उसका शरीर शर्मनाक, भयावह और घिनौना है। समाज नारी को या तो अतिशय कामुकता में धकेलता है या फिर औपनिवेशिक दमन में। यह पूरी दुनिया नारी रूप का अपमान करती है, जिसके कारण यह स्वयं ही मर रही है।
#### नारी के प्रति समाज का दृष्टिकोण
आज की दुनिया में नारी के शरीर को लेकर अनेक प्रकार की मिथ्याएं फैली हुई हैं। जैसे ही एक बच्ची का जन्म होता है, उसे यह बताया जाता है कि उसे अपने शरीर को ढक कर रखना चाहिए। उसकी मासूमियत को समाज की विकृत दृष्टि से बचाने के लिए अनेक प्रकार की बंदिशें लगाई जाती हैं।
#### अतिशय कामुकता और दमन
समाज नारी को दो ध्रुवों में विभाजित करता है। एक ओर उसे अतिशय कामुकता की ओर धकेला जाता है, जहां उसका शरीर केवल एक वस्तु के रूप में देखा जाता है। दूसरी ओर उसे दमन के कठोर बंधनों में जकड़ा जाता है, जहां उसकी स्वतंत्रता और स्वाभाविकता को नकारा जाता है। यह द्वंद्व नारी के आत्मसम्मान और स्वाभिमान को चोट पहुंचाता है।
#### संस्कृत श्लोक
"या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"
इस श्लोक में नारी के मातृ रूप की वंदना की गई है। नारी केवल जन्मदात्री नहीं है, वह सृजन की स्रोत है।
#### हिंदी कविता
"नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में॥"
यह कविता नारी के प्रति आदर और सम्मान की भावना व्यक्त करती है।
#### नारी का महत्त्व
नारी का शरीर केवल एक भौतिक वस्तु नहीं है, वह आत्मा का निवास है। नारी के रूप में शक्ति, ज्ञान और करुणा की प्रतीक है। समाज को चाहिए कि वह नारी के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदले और उसे सम्मान दे।
#### निष्कर्ष
इस दुनिया को अपनी सोच बदलनी होगी। नारी के शरीर को अपमानित करना स्वयं को अपमानित करने के समान है। जब तक हम नारी के प्रति अपने दृष्टिकोण को नहीं बदलेंगे, तब तक यह संसार जीवित नहीं रहेगा। नारी के शरीर का सम्मान करना, उसकी आत्मा का सम्मान करना है।
"नारी का सम्मान करो, यही सच्ची पूजा है।"
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