जुड़ाव की तलाश और उसकी सच्चाई



जो लोग जुड़ाव के लिए हताश होते हैं,
उन्हें मैं जानता हूँ, क्योंकि मैंने इसे खुद महसूस किया है।
उनकी प्यास, उनके शब्द, उनका आग्रह,
यह सब कुछ ऐसा लगता है, जैसे वे मुझसे कुछ छीनने आए हैं।

यह एक भारी बोझ होता है,
जो रिश्ते को दबा देता है।
ऐसा लगता है, जैसे उनकी तलाश कभी खत्म नहीं होती,
और हर कदम, हर शब्द, हर लम्हा एक उम्मीद में डूबा होता है।

लेकिन जब मैं खुद को सहज छोड़ता हूँ,
खुला और दोस्ताना, बिना किसी योजना के,
तब मुझे लगता है, जैसे हवा भी मुझे समझती है,
और रिश्ते स्वाभाविक रूप से बनते हैं, बिना किसी दबाव के।

जब मैं बिना किसी जरूरत के बस वहाँ होता हूँ,
वही पल मेरे भीतर और बाहर गूंजता है।
यह अहसास, किसी को छीनने या पाने का नहीं,
बल्कि एक साझा अनुभव है, जो सच्चे रिश्तों की ओर ले जाता है।

यह प्रक्रिया तेज़ नहीं होती,
यह धीरे-धीरे पनपती है, जैसे बीज धरती में उगता है।
जब आप कोई 'पल' बनने के दबाव से मुक्त होते हैं,
तब आप एक सुंदर और स्थायी दोस्ती की नींव रखते हैं।

तो अब मैं जानता हूँ,
जुड़ाव की तलाश, हताशा से नहीं, बल्कि सहजता से मिलती है।
यह समझ, यही वास्तविकता है—
जो बिना किसी अपेक्षा के, अपने आप को पूरी तरह से अनुभव करती है।


अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...