स्वतंत्रता की पराकाष्ठा


सबसे बड़ी स्वतंत्रता क्या है?
ये कि तुम वास्तविकता को
जैसा चाहो, वैसा देख सको।
चाहे उसे अपने अर्थ दे दो,
या उसे बिना अर्थ के छोड़ दो।

हर दृश्य, हर शब्द, हर कहानी,
तुम्हारी दृष्टि पर निर्भर है।
तुम्हारी आँखें तय करेंगी,
ये दर्द है, या जीवन का रंग है।

जो देखा, उसे गहराई दो,
या बस उसे बहने दो।
ये चुनाव तुम्हारा है,
किसी और का नहीं।

कभी सत्य को पकड़े रखना,
कभी उसे छूट जाने देना।
कभी व्याख्या में उतर जाना,
कभी ख़ामोशी में खो जाना।

यही तो है असली मुक्ति,
जहाँ ना बाध्य हो तुम अर्थ देने को,
ना मजबूर हो तुम उसे समझने को।
बस एक साक्षी बन जाओ,
और जीवन को बहने दो।

क्योंकि वास्तविकता का सत्य यही है—
वो तुम पर निर्भर करती है।
उसे तुम जैसा बनाओगे,
वो वैसा ही तुम्हारे सामने आएगी।


श्रेष्ठ पुरुष के प्रतीक

एक शरीर जो ताजगी और ताकत से भरा हो, स्वस्थ आदतें, जो उसे दिन-ब-दिन नया रूप दें। ज्ञान की राह पर जो चलता हो, पढ़ाई में समृद्ध, हर किताब में न...