मैंने एक इंसान को पहाड़ चढ़ने में मदद की,
उसके संघर्ष में अपने कदम भी बढ़ाए।
हर चोटी की ओर बढ़ते हुए,
जैसे अपने भीतर के डर मिटाए।
उसकी थकी सांसों का सहारा बना,
उसके गिरते कदमों को संबल दिया।
उसकी जीत में मैंने पाया,
अपना भी कुछ खोया हुआ रास्ता।
हर पत्थर, हर ढलान पर,
हम दोनों ने साथ में संतुलन साधा।
जितना उसे ऊपर चढ़ाया,
उतना ही मैंने खुद को संभाला।
जब उसने शिखर पर कदम रखा,
तो मैंने देखा, मैं भी वहाँ था।
उसकी सफलता में मेरी खुशी,
जैसे मेरा भी सपना पूरा हुआ।
मैंने समझा, सहायता सिर्फ़ देना नहीं,
वो हमें खुद को खोजने का अवसर देती है।
दूसरों को ऊंचाई पर पहुंचाने में,
हम भी ऊंचा उठ जाते हैं।
यह यात्रा अकेले की नहीं,
यह साझेदारी का सार है।
दूसरों के सपनों को पंख देने में,
हम अपने पंख भी फैला लेते हैं।