काल का प्रहरी



मैं अंधकार की चादर ओढ़े,
साहस का दीप जलाए खड़ा हूँ।
सत्य का रक्षक, समय का प्रहरी,
काल के पथ पर अकेला बढ़ा हूँ।

मेरे चारों ओर भय का समुंदर,
पर मेरे भीतर विश्वास की लहरें।
क्षण-क्षण बदलते समय के संग,
मैं चलूँ, संभालूँ जीवन की डगरें।

अंधियारे में मेरा हृदय दीप्त है,
सत्य की लौ से प्रज्वलित।
हर झूठ के जाल को काटने को,
मैं खड़ा हूँ, तेजस्वी, अडिग।

काल की धारा में बहते जीवन,
सत्य का दीप दिखलाता हूँ।
मैं न रुकूँ, न झुकूँ किसी से,
धर्म का पथ सिखलाता हूँ।

मैं हूँ काल का दूत, सत्य का प्रहरी,
अधर्म की हर दीवार गिरा दूँगा।
जो भी अंधकार में खो गए हैं,
उन्हें प्रकाश में लाकर दिखा दूँगा।

तो आओ, मेरे संग चलो तुम,
इस अंधियारे को चीरना है।
सत्य की ध्वजा उठानी है अब,
और इस संसार को बदलना है।


आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...