मौन की महिमा



यदि तुम केवल एक ही कला सिखो,
मौन की गहराइयों में डुबकी लगाओ।
हर कुरूपता, हर अशांति,
तुम्हारे जीवन से स्वयं मिट जाएगी।

मौन वह दीप है, जो भीतर जलता है,
अंधकार को हर क्षण पिघलाता है।
जहाँ शब्दों का शोर समाप्त हो,
वहीं आत्मा का संगीत फूट पड़ता है।

"यत्र तु मौनं वर्धते, तत्र सत्वं भवति।"
जहाँ मौन बढ़ता है, वहाँ सत्व जागता है।
कोई चीख, कोई दर्द नहीं,
सिर्फ आत्मा का गूढ़ सत्य जागता है।

शब्दों के पीछे जो शक्ति है,
वह मौन की ही सन्तान है।
हर ऋषि, हर ज्ञानी ने कहा,
"मौन ही तो ईश्वर की पहचान है।"

मौन नहीं बस चुप्पी का नाम,
यह तो ब्रह्म का स्पर्श है।
शब्द जहां थम जाते हैं,
वहीं ब्रह्मांड का सार प्रकट है।

तुम्हारे भीतर की हलचल,
जो तुम्हें कभी चैन नहीं देती,
मौन में ही वो झरना बन जाती है,
जो हर विष को धो देती है।

यदि चाहो शांति, सुन्दरता,
तो केवल मौन को अपना लो।
बिना शोर, बिना प्रयास,
हर असत्य से खुद को बचा लो।

मौन की इस साधना में,
जीवन का हर रहस्य मिलेगा।
शब्दों की सीमाएं टूटेंगी,
और परम सत्य दिखेगा।


अवलोकितेश्वर: करुणा का प्रतीक



अवलोकितेश्वर बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय में करुणा के प्रतीक के रूप में पूजित हैं। इन्हें "करुणा का बोधिसत्त्व" कहा जाता है, जो सभी प्राणियों के दुःख को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनकी हजार भुजाएँ और हजार नेत्र एक गहन प्रतीकात्मकता लिए हुए हैं। आइए इस दिव्य प्रतिमा के दर्शन और अर्थ को समझने का प्रयास करते हैं।

हजार भुजाओं का प्रतीक

अवलोकितेश्वर की हजार भुजाएँ दर्शाती हैं कि वे एक साथ अनेक दिशाओं में, असीम तरीकों से, प्राणियों की सहायता करने में सक्षम हैं। यह उनकी सार्वभौमिक करुणा और सेवा भावना का प्रतीक है।

भुजाएँ और सहायता: प्रत्येक भुजा में एक नेत्र स्थित होता है, जो उनकी हर दिशा में जागरूकता को दर्शाता है। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी प्राणी उनके ध्यान से वंचित न रह सके।

करुणा का प्रसार: यह प्रतीक हमें सिखाता है कि करुणा की कोई सीमा नहीं होती और हमें भी दूसरों के कष्टों को कम करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।


"ओम मणि पद्मे हुम" का महत्व

इस मंत्र का गहरा संबंध अवलोकितेश्वर से है। इसका जाप मनुष्य के हृदय में करुणा और शुद्धि का संचार करता है:

> ओम - शरीर, वाणी, और मन की शुद्धि का प्रतीक
मणि - रत्न, जो करुणा का प्रतीक है
पद्मे - कमल, जो ज्ञान का प्रतीक है
हुम - एकता और शक्ति का प्रतीक


यह मंत्र हमें बताता है कि करुणा और ज्ञान को मिलाकर जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।

हजार नेत्रों का महत्व

अवलोकितेश्वर की हजार आँखें इस बात का प्रतीक हैं कि वे संसार के हर कोने में हो रहे दुःख को देख सकते हैं। ये नेत्र हमें यह भी याद दिलाते हैं कि हमें अपनी अंतर्दृष्टि का उपयोग कर हर व्यक्ति के दुःख को समझने और उसे कम करने का प्रयास करना चाहिए।


अवलोकितेश्वर और बौद्ध दर्शन

बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय में अवलोकितेश्वर का विशेष स्थान है। वे "निर्वाण" को प्राप्त करने की बजाय संसार के प्राणियों की सहायता करने के लिए इस धरती पर बने रहने का संकल्प लेते हैं। इसे "बोधिसत्त्व प्रतिज्ञा" कहा जाता है।

शिक्षाएँ और प्रेरणा

अवलोकितेश्वर हमें यह सिखाते हैं:

करुणा: हर व्यक्ति के प्रति प्रेम और दया का भाव रखें।

सेवा: अपनी क्षमताओं का उपयोग दूसरों की सहायता के लिए करें।

असिमित क्षमता: जैसे हजार भुजाएँ और नेत्र हर दिशा में काम करते हैं, वैसे ही हमें भी अपने भीतर असीम संभावनाओं को पहचानना चाहिए।

अवलोकितेश्वर की प्रतिमा और उनकी शिक्षाएँ मानवता के लिए करुणा और सेवा का मार्ग प्रशस्त करती हैं। उनकी हजार भुजाएँ और नेत्र हमें यह संदेश देती हैं कि यदि हमारा उद्देश्य शुद्ध हो और हमारी भावना दृढ़, तो हम भी हर दिशा में लोगों के लिए सहायक हो सकते हैं। उनके प्रति श्रद्धा रखना न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि यह हमारे जीवन को भी अधिक सार्थक और सेवा-प्रधान बनाता है।

ॐ मणि पद्मे हुम।


मेरा मध्‍य बिंदु

जब नींद अभी आई नहीं, जागरण विदा हुआ, उस क्षण में मैंने स्वयं को महसूस किया। न सोया था, न जागा था मैं, बस उस मध्‍य बिंदु पर ठहरा था मैं। तन श...