जब जाना
कि तनाव चुपचाप
मेरे भीतर घर बना रहा है,
साँसों की लय बिगाड़ रहा है,
दिल की धड़कनें चुरा रहा है,
तो मैंने सोचा—
अब बहुत हुआ।
मैंने देखा
कैसे एक छोटी सी बात
दिन भर दिमाग में घूमती थी,
कैसे हर बात में
मैं खुद को दोष देता था,
और अपने ही मन के
बोझ तले दबता चला जा रहा था।
फिर एक दिन
मैंने खुद से कहा—
बस!
अब नहीं।
मैंने सीखा
हवा को महसूस करना,
आकाश को देख मुस्कुराना,
और बीते हुए कल को
बस एक कहानी मानकर भूल जाना।
अब मैं
हर बात का भार नहीं उठाता,
जो मेरा नहीं—
उसे मुस्कुराकर लौटा देता हूँ।
कभी-कभी खुद से कह देता हूँ—
"चलो, जाने दो...
सच में, कोई बात नहीं।"
क्योंकि अब मैंने
तनाव को नहीं,
शांति को चुना है।
अब मैं
ज़िन्दगी को हल्का-सा जीता हूँ।