प्रेम और आसक्ति का भेद



ध्यान मिला, लगा प्रेम का रूप है,
पर दिल ने कहा, यह केवल धूप है।
जो पलभर का हो, वह स्थायी कैसे?
प्रेम तो वह, जो जड़ों में बसे।

आसक्ति ने डोर से बांधा मुझे,
जैसे पतंग बंधी हो आकाश तले।
पर जुड़ाव कहां, यह समझ न आया,
संबंध में सच्चा आधार न पाया।

जो न्यूनतम प्रयास, बस दिखावा करे,
वह रिश्ता हृदय को भर कैसे सके?
प्रेम वह है, जिसमें पूरा समर्पण,
हर शब्द, हर स्पर्श में हो जीवन।

घाव भरे, तो आंखें खुलीं,
समझा, ध्यान का छल था यही।
आसक्ति से जो बंधा, वह भ्रम था,
और प्रेम? वह स्वाभाविक क्रम था।

प्रेम मुक्त करता, और आसक्ति बांधती,
ध्यान सुखद लगता, पर छाया है दिखती।
जो दिल से जुड़ जाए, वही सच्चा,
बाकी सब तो है सिर्फ शब्दों का मठा।

अब हरा कर, हर पुराना निशान,
सत्य से जुड़, छोड़ झूठा अभिमान।
प्रेम और ध्यान का भेद जान ले,
और आत्मा में सच्चाई पहचान ले।

प्रेम का अर्थ है स्वतंत्रता,
आसक्ति का अर्थ है परतंत्रता।
इन दोनों के बीच खड़ा है सत्य,
बस उसे अपनाने में है सच्चा यत्न।


श्रेष्ठ पुरुष के प्रतीक

एक शरीर जो ताजगी और ताकत से भरा हो, स्वस्थ आदतें, जो उसे दिन-ब-दिन नया रूप दें। ज्ञान की राह पर जो चलता हो, पढ़ाई में समृद्ध, हर किताब में न...