पहाड़ों की उंचाइयों पर खो जाना

पहाड़ों की उंचाइयों पर खो जाना,
स्वाभाविक सांसों में आजाना।
विस्तार की खोज में, शांति की धरा,
पहाड़ों की गोद में चिपकर जीना हर बारा।

सुन्दरता की काया, प्राकृतिक समृद्धि की महिमा,
पहाड़ी जीवन की कहानी, सर्वांगीण उत्सव की ध्वनि।
चिर साथी हैं, पहाड़ों के साथी,
जीवन की मंजिल, वहां की राही।

पहाड़ी शीतलता, प्रेम की गहराई,
स्वाभाविक खेल, आत्मीयता की विविधता।
पहाड़ी जीवन का सार, एकान्त और साझेदारी,
स्वाभाविक संयोग, पहाड़ों का प्यारी विहारी।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...