जब मैं फिर से उठूंगा


मैं टूटा हूँ तो क्या हुआ, मैं बिखरा हूँ तो क्या,
ज़िन्दगी ने सीखा दिया—कौन अपना, कौन पराया।
पर एक बात मैं दिल में जलते दीये-सी रखता हूँ,
जब मेरा आत्मविश्वास लौटेगा… फिर कोई मुझे रोक न पाएगा।

आज हालात भारी हैं, पर दिल में अब भी शेर बसा है,
मेरे भीतर का योद्धा बस थोड़ी देर को सोया-सा है।
मैं गिरा ज़रूर हूँ, पर हार मानना मुझे आता नहीं,
मैं लौटकर आता हूँ तूफ़ानों-सा, खून में मेरे पीछे हटना लिखा नहीं।

जिन्होंने समझ लिया था कि मैं खत्म हो चुका हूँ,
जिन्होंने हँसकर कहा था—“अब ये उठ नहीं सकता है,”
उन के चेहरे की हँसी मैं याद रखे बैठा हूँ,
एक दिन लौटकर उन्हें वही जवाब देना बाकी है।

मैं ज़िन्दगी से भागूँगा नहीं, मैं डरकर छिपूँगा नहीं,
जो भी दर्द मिला, उसे अपना कवच बनाऊँगा।
आज मैं कमज़ोर दिखता हूँ, पर ये बस एक मौसम है,
मैं एक-एक चोट से अपना भविष्य चमकाऊँगा।

मेरा आत्मविश्वास मेरा हथियार है—
और वो किसी दिन फिर से चमकेगा।
और जिस दिन मैं मुस्कुराकर सीना तानकर खड़ा हो जाऊँगा—
उस दिन मेरे दुश्मनों का खेल ख़त्म हो जाएगा।

मैं शांत हूँ पर कमज़ोर नहीं,
मैं चुप हूँ पर टूटा नहीं,
मैं रुक गया हूँ पर खत्म नहीं—
मेरा इरादा अभी भी चट्टान जैसा है।

जिस दिन मैं फिर उठूँगा,
दुनिया देखेगी—
एक आदमी क्या कर सकता है
जब वो खुद पर फिर से यक़ीन कर लेता है।

मैं अपने ज़ख्मों से रोना नहीं चाहता,
मैं उन्हें ही अपनी धार बनाऊँगा।
और फिर वही लोग दंग रह जाएंगे—
जिन्होंने सोचा था कि मैं कभी न लौट पाऊँगा।

हाँ, एक दिन मेरा आत्मविश्वास लौटेगा,
और उस दिन…
मेरे दुश्मनों के लिए—खेल खत्म हो जाएगा।