भाग 5: नाज़ी शासन और यहूदियों के खिलाफ नीति



नाज़ी नीतियाँ और यहूदियों के खिलाफ कानून

नाजी शासन ने यहूदियों के खिलाफ अपनी नीतियों को धीरे-धीरे और संगठित रूप से लागू किया। 1933 में हिटलर के सत्ता में आने के बाद, यहूदियों के खिलाफ भेदभावपूर्ण कानूनों का सिलसिला शुरू हो गया। इन कानूनों का उद्देश्य यह था कि यहूदियों को जर्मन समाज से पूरी तरह से अलग किया जाए और उन्हें दूसरे दर्जे के नागरिक बना दिया जाए।


नूरेम्बर्ग कानून (1935) और यहूदियों के अधिकारों में कटौती

1935 में नूरेम्बर्ग कानून (Nuremberg Laws) लागू किए गए, जो यहूदियों के खिलाफ प्रमुख कानूनी कदम थे। इन कानूनों के तहत यहूदियों को नागरिक अधिकारों से वंचित किया गया और उन्हें जर्मन समाज से पूरी तरह अलग कर दिया गया।

नूरेम्बर्ग कानूनों के मुख्य बिंदु:

  1. जर्मन नागरिकता का रद्द होना: यहूदियों को जर्मन नागरिकता से वंचित कर दिया गया और वे जर्मनी के पूर्ण नागरिक नहीं रहे।

  2. जातीय पहचान: यह कानून यहूदी धर्म के आधार पर व्यक्ति की जातीय पहचान को परिभाषित करते थे। किसी भी व्यक्ति का यहूदी होना तय किया गया था अगर वह किसी यहूदी माता-पिता से जन्मा हो।

  3. विवाह पर प्रतिबंध: यहूदियों और आर्थोडॉक्स जर्मनों के बीच विवाह पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। यहूदी और "अ Aryan" लोगों के विवाह और शारीरिक संबंधों को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया।

इन कानूनों का उद्देश्य यह था कि यहूदियों को जर्मन समाज से बाहर किया जाए और उन्हें समाज के किसी भी पहलू से पूरी तरह बाहर कर दिया जाए।


यहूदियों के व्यवसायों और संपत्तियों की जब्ती

नाजी शासन ने यहूदियों के व्यापारों और संपत्तियों को जब्त करना शुरू कर दिया। 1938 में, यहूदियों से उनके व्यवसाय और संपत्ति छीनने की प्रक्रिया तेज़ हो गई। सरकार ने यहूदी व्यापारियों के व्यापारों को या तो जब्त कर लिया या उन्हें नाजियों के अनुयायी व्यवसायियों को बेचने के लिए मजबूर कर दिया।

इसके अलावा, यहूदियों के लिए बैंकों से धन निकालने की प्रक्रिया भी कठिन बना दी गई। इस प्रकार, उनकी आर्थिक स्थिति को जानबूझकर कमजोर किया गया और उन्हें आर्थिक रूप से निर्बल किया गया।


यहूदियों के लिए अलगाव और भेदभावपूर्ण नीतियाँ

नाजी शासन ने यहूदियों के लिए विशेष अलगाववादी नीतियाँ लागू कीं। समाज के विभिन्न हिस्सों में उन्हें अलग किया गया, जैसे कि स्कूलों में यहूदी छात्रों को बैठने की अलग जगह दी गई, सार्वजनिक स्थानों पर उन्हें प्रवेश करने से रोका गया, और उन्होंने यहूदियों के लिए अलग-अलग आवास की नीतियाँ बनाई।

यहूदियों को सार्वजनिक सेवाओं, सरकारी नौकरियों और अन्य समाजिक अवसरों से बाहर कर दिया गया। इसके अलावा, यहूदी परिवारों के बच्चों को स्कूलों से निकाल दिया गया और उन्हें अलग-अलग 'यहूदी स्कूलों' में भेजा गया।


क्रिस्टलनाच (Kristallnacht) और उसके परिणाम

क्रिस्टलनाच, जिसे "क्रिस्टल नाइट" भी कहा जाता है, 9 और 10 नवंबर 1938 को हुआ एक बड़ा हमला था जो नाजी शासन द्वारा यहूदियों के खिलाफ एक हिंसक अभियान का हिस्सा था। इस रात को यहूदियों के व्यवसायों, घरों और सिनेगॉगों पर हमले किए गए।


1938 में यहूदी व्यापारों और सिनेगॉगों पर हमले

क्रिस्टलनाच के दौरान, नाजियों ने यहूदियों के व्यापारों और सिनेगॉगों पर सामूहिक हमले किए। यहूदियों की दुकानों की खिड़कियाँ तोड़ दी गईं, व्यापारों को लूटा गया और सिनेगॉगों में आग लगा दी गई। यह रात जर्मनी और ऑस्ट्रिया में यहूदियों के लिए एक मंहगी याद बन गई, जिसमें लगभग 7,500 यहूदी व्यवसायों को नुकसान हुआ, 200 से ज्यादा सिनेगॉगों को आग के हवाले किया गया और हजारों यहूदी नागरिकों को सड़कों पर मारा गया।


यहूदियों की गिरफ्तारी और जबरन श्रम शिविरों में भेजना

क्रिस्टलनाच के बाद, नाजियों ने हजारों यहूदियों को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें जबरन श्रम शिविरों में भेज दिया। इस हिंसा के दौरान, लगभग 30,000 यहूदी पुरुषों को कंसंट्रेशन कैम्पों में भेजा गया। कई यहूदी महिलाओं और बच्चों को भी गिरफ्तार किया गया और उन्हें अलग-अलग शिविरों में भेज दिया गया।

यह नफ़रत और हिंसा का यह एक उदाहरण था, जो नाजी शासन के तहत यहूदियों के खिलाफ किए गए उत्पीड़न का संकेत था।


समाज में यहूदियों के खिलाफ बढ़ती हुई हिंसा

क्रिस्टलनाच के बाद, समाज में यहूदियों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव बढ़ता गया। नाजी पार्टी के समर्थक यहूदियों को सड़कों पर पीटते थे, उनके घरों में आग लगाते थे और उन्हें हर जगह से बाहर निकालने के लिए हर तरह के तरीके अपनाते थे। यहूदियों को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाता और उनकी सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक पहचान को नष्ट करने का प्रयास किया जाता।


निष्कर्ष

नाजी शासन द्वारा यहूदियों के खिलाफ लागू की गई नीतियाँ और क़ानून बेहद क्रूर और उत्पीड़क थे। इन नीतियों ने यहूदियों को समाज से पूरी तरह अलग किया और उनकी स्थिति को अत्यंत कठिन बना दिया। क्रिस्टलनाच जैसे हमले यहूदियों के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने के लिए किए गए थे, और इस प्रकार नाजी शासन ने यहूदियों को शारीरिक, मानसिक, और आर्थिक रूप से तंग किया। अगले भाग में हम देखेंगे कि कैसे यह नीतियाँ और हमले शरणार्थी शिविरों और नाज़ी काल के अन्य अत्याचारों की ओर बढ़े।