अहंकार का अंत





अहंकार ने मन को अंधा किया,
सत्य से दूर, आत्मा को विछिन्न किया।
परंतु द्वार है खुला उस प्रभु के लिए,
झुकने का साहस चाहिए बस जीने के लिए।

नम्रता वह शक्ति है, कमजोरी नहीं,
यह वह दीपक है, जो अंधकार को छूता नहीं।
हर कण में ब्रह्म की पहचान जो करे,
वही सच्चे अर्थों में जीवन को सहे।

क्यों देखें औरों के कर्म की दिशा?
हमारी गति ही है हमारी परीक्षा।
कर्मों का फल है, वही सत्य का राज़,
स्वयं के कर्मों से बनाएं जीवन का साज।

ईश्वर के द्वार पर शीश झुका दो,
अपने भीतर के दर्प को मिटा दो।
यही है रहस्य, यही है मार्ग,
नम्रता से पाओ प्रभु का द्वार।


छाँव की तरह कोई था

कुछ लोग यूँ ही चले जाते हैं, जैसे धूप में कोई पेड़ कट जाए। मैं वहीं खड़ा रह जाता हूँ, जहाँ कभी उसकी छाँव थी। वो बोलता नहीं अब, पर उसकी चुप्प...