हमारे जीवन का असली अर्थ हमारे ताप में छिपा है।

### अपना ताप न छिपाएं

ताप वह तत्व है जो हमें जीवन में ऊर्जावान और सृजनात्मक बनाता है। जब हम अपने असली स्वरूप को पहचानते हैं और उसे स्वीकार करते हैं, तभी हम अपने भीतर की ऊर्जा को सही दिशा में ले जा सकते हैं। यह ऊर्जा ही हमारे जीवन को रचनात्मकता, खुशी और संतोष से भर देती है।

#### घर और आगंतुक का महत्व

संस्कृत में कहा गया है:
"अतिथिदेवो भवः।"
(अर्थात, अतिथि को देवता मानें।)

हमारा घर और हमारा आतिथ्य, हमारे ताप का मूल स्रोत हैं। घर वह स्थान है जहाँ हम सहजता से बैठते हैं, आराम महसूस करते हैं और हमारे आत्मिक अस्तित्व को पोषित करते हैं। यह स्थान हमारे भीतर की रचनात्मकता को जाग्रत करने का साधन बनता है। 

#### स्वाभाविकता और आत्मिक पोषण

जब हम अपने असली स्वरूप में होते हैं, तब हम अपने आस-पास की हर वस्तु से जुड़ाव महसूस करते हैं। यह जुड़ाव हमें आत्मिक रूप से संतुष्टि और शांति प्रदान करता है। 

### सृजनात्मकता का उदय

**कविता:**
"जहाँ भी देखूं, तेरा ही चेहरा नजर आता है,
तू ही है जो मेरे दिल को हर पल बहलाता है।
तेरी मौजूदगी से ही तो मेरी रूह को सुकून मिलता है,
तेरी तपिश से ही तो मेरा हृदय सृजन में लिप्त होता है।"

जब हम अपने वास्तविक ताप को समझते हैं और उसे व्यक्त करते हैं, तब हमारी सृजनात्मकता प्रज्वलित होती है। यह ताप हमें नए विचारों, नए दृष्टिकोणों और नए सृजन की ओर प्रेरित करता है। 

#### अपने ताप को पहचानें और व्यक्त करें

अपने जीवन में ऐसे क्षणों को पहचानें जब आप वास्तविक रूप से खुशी, संतोष और उर्जा महसूस करते हैं। इन क्षणों में ही आपके भीतर की सृजनात्मकता जाग्रत होती है। अपने ताप को छिपाएं नहीं, बल्कि उसे पहचानें और व्यक्त करें। 

### निष्कर्ष

हमारे जीवन का असली अर्थ हमारे ताप में छिपा है। इसे पहचानें और इसके माध्यम से अपने जीवन को सृजनात्मकता, खुशी और संतोष से भर दें। जीवन का हर पल महत्वपूर्ण है, इसे पहचानें और अपने असली स्वरूप को जीएं।

संस्कृत श्लोक:
"सर्वं ज्ञानं मयि सन्निहितं कृत्वा,
मम सृजनं हि स्वाभाविकं भवति।"

(अर्थात, सभी ज्ञान मेरे भीतर स्थित है, और मेरी सृजनात्मकता स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होती है।)

इसलिए, अपने ताप को पहचानें, उसे व्यक्त करें और अपने जीवन को सृजनात्मकता और खुशी से भरें।

निंद्रा नाश

निंद्रा नाश की रात्रि है,
स्वप्न भी मुझसे रूठ गए हैं।
चुपचाप खिड़की से झांकता,
चाँदनी भी कुछ कहे हैं।

नींद के आंगन में अब तो,
सन्नाटा ही बसता है।
आंखें खुली पर मन में,
एक वीराना सा लगता है।

तकिये पे रखे सिर ने भी,
करवटें लेना छोड़ दिया।
नींद की रानी ने शायद,
मुझसे मिलना छोड़ दिया।

सितारों की महफ़िल सजी है,
पर मन में बेचैनी है।
रात की चुप्पी में बस,
तेरी यादें ही सहनी है।

उजाले की किरणें आएंगी,
जब ये रात गुजर जाएगी।
नींद न आई तो क्या हुआ,
सपनों की बात सवर जाएगी।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...