निंद्रा नाश

निंद्रा नाश की रात्रि है,
स्वप्न भी मुझसे रूठ गए हैं।
चुपचाप खिड़की से झांकता,
चाँदनी भी कुछ कहे हैं।

नींद के आंगन में अब तो,
सन्नाटा ही बसता है।
आंखें खुली पर मन में,
एक वीराना सा लगता है।

तकिये पे रखे सिर ने भी,
करवटें लेना छोड़ दिया।
नींद की रानी ने शायद,
मुझसे मिलना छोड़ दिया।

सितारों की महफ़िल सजी है,
पर मन में बेचैनी है।
रात की चुप्पी में बस,
तेरी यादें ही सहनी है।

उजाले की किरणें आएंगी,
जब ये रात गुजर जाएगी।
नींद न आई तो क्या हुआ,
सपनों की बात सवर जाएगी।

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