सर्दी में गर्मी, गर्मी में ठंड

सर्दी में गर्मी छूटी नहीं, गर्मी में ठंड है बढ़ी,
क्या यह बदलते मौसमों में है कोई रहस्य छुपी?

प्रकृति के खेल का है यह नया संगीत,
जो बदल रहा है आधे आधे रूप और रंग में।

सर्दी के मेंहदी छाये, गर्मी की धूप जवां,
जोड़ रहे हैं नाट्यम् अपनी खिलखिलाहट के खान।

ग्राम की धरती सोयी है अब आँगन में,
सर्दी के छटे जमीन पर धुप बिखरी है धूमिल निगाहों में।

प्रकृति का यह मेल मिलाप है सुन्दर,
जो दर्शाता है उसका विश्वास अतुल्य अद्भुत संगीत।

इस विचित्र खेल की खुद से ही बातें हैं कई,
सर्दी में गर्मी, गर्मी में ठंड, हर मौसम की लहर नयी।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...