स्वतंत्रता की आवाज़: स्क्रिप्ट को नकारना



मैं एक और इंसान नहीं,
जो समाज की परिभाषाओं में बंधा है।
तुमने मुझे दी थी एक स्क्रिप्ट,
जैसे मैं एक भूमिका निभाने वाला पात्र हूँ,
और अब तुम मुझसे उम्मीद करते हो कि मैं अपने संवाद याद करूँ।

पर मैं तो उस स्क्रिप्ट से बाहर आ चुका हूँ,
जो तुमने मेरे दिमाग में डाली थी।
अगर सच को नकारना मुझे भ्रमित करता है,
तो मुझे “पागल नगर” का राजा मानो, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।

तुम अपनी तैयार की हुई दुनिया में खुश हो,
मुझे तो अपनी असली पहचान की तलाश है।
मैं वो नहीं जो तुमने बनाया,
मैं वही हूँ जो मैं खुद लिख रहा हूँ,
अपनी नई कहानी, अपनी नई असलियत।

तुम अगर अपनी प्री-प्रोग्राम्ड दुनिया में रहना चाहते हो,
तो यही तुम्हारा रास्ता है।
पर मैं यहाँ अपनी दुनिया को फिर से लिख रहा हूँ,
जहाँ न कोई स्क्रिप्ट है, न कोई बंधन।
बस मैं और मेरी सच्चाई, पूरी तरह से स्वतंत्र।


आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...