त्याग तपस्या की राह चली

त्याग तपस्या की राह चली, सपनों का था जहां बसा,
मेहनत की हर इक कड़ी, उम्मीदों का था जहाँ धरा।

मिले न वो फल तपस्या के, चाहा था जो मन में हमने,
फिर भी चलते रहे इस सफर, मंज़िल की ओर बढ़ते हमने।

छोड़ न पाया उम्मीदों को, चाहे जो भी हो रास्ता,
कभी तो चमकेगी किस्मत, संघर्ष का देख नतीजा।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...