अब मैं मैं हूँ



अब मैं मैं हूँ 
झुका नहीं, रुका नहीं,
अपनी सीमाएँ रेखांकित कर चुका हूँ,
अब मैं किसी का मोहर नहीं।

पहले हाँ थी मेरी भाषा,
अब ‘न’ का भी अधिकार लिया है,
जो चाहते थे सिर झुकाना मेरा,
उन्हें अब आईना दिया है।

कहते हैं— "तू बदल गया है,"
हाँ, मैं बदल चुका हूँ,
अब मैं बस मुस्कुराता हूँ,
पर हर दर्द नहीं सहूंगा।

अब न कोई फ़िज़ूल उम्मीद रखे,
न कोई मुझसे कुछ छीने,
मैं अपने मौलिक सत्य में खड़ा हूँ,
और इस सत्य को अब कोई नहीं जीते।




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