बहुत अच्छा बनना" – आत्म-उपेक्षा का बोझ



इतना अच्छा बनना क्या कभी समझाया है,
कभी खुद से सवाल किया है, जो जीते हो?
कभी सोचा है, हर बार खुद को खोकर,
तुम्हारी आत्मा कहां जाती है, क्या वह भी रोती है?

दूसरों को खुश करने की यह आदत,
क्या तुम जानते हो, इसे चुकाना क्या होता है?
दिन-रात देते रहते हो, बिना कुछ लिए,
पर क्या कभी खुद के लिए कुछ किया है, बिना कुछ देखे?

तुम्हारी मुस्कान अब बोझ बन जाती है,
तुम्हारी उदासी को कोई नहीं समझ पाता है।
दूसरों के सुख में खुद को छुपा लेते हो,
पर अपने आंसुओं को छिपाते हो, यह क्या होता है?

"बहुत अच्छा बनना" तुम्हें थका देता है,
दूसरों के लिए अपने ही सपनों को तोड़ देता है।
तुम बिखरते जाते हो, फिर भी चुप रहते हो,
क्योंकि तुम डरते हो, खुद से माफी मांगते हो।

पर यही दया नहीं, यह आत्म-उपेक्षा है,
जो तुम्हारे भीतर के सूरज को बुझा देती है।
जब तुम खुद को भूल जाते हो, रिश्ते खो जाते हैं,
क्योंकि खुद से प्यार किए बिना, क्या किसी को प्यार दे सकते हैं?

आत्म-सम्मान टूटता है, आत्मा चुप होती है,
तुम्हारी उपेक्षा ही तो तुम्हारी हार होती है।
नफ़रत नहीं, यह तो खुद से अनदेखी है,
जो तुम्हें अंत में टूटने पर मजबूर करती है।

अब समय है खुद को ढूंढने का,
अपने भीतर की शक्ति को समझने का।
"बहुत अच्छा बनना" छोड़ो, खुद को गले लगाओ,
अपनी जरूरतों को पहचानो और उन्हें पूरा करने का हौसला बढ़ाओ।

क्योंकि सच्ची दया तब है,
जब तुम खुद से प्यार करते हो।
तुम्हारा अस्तित्व भी मायने रखता है,
और खुद को समझने का वक्त आ गया है।


बहुत अच्छा बनना" – डर की परतें

"

कभी सोचा है क्यों हर बार माफी मांगते हो,
जब तुम्हारा कोई दोष नहीं, फिर भी झुकते हो?
क्यों हर बार सबकी खुशी में खो जाते हो,
अपनी चाहतों को अनदेखा कर देते हो?

यह जो "बहुत अच्छा बनना" है,
क्या यह सच में दया है, या डर का खेल है?
हर बार "सॉरी" कहते हुए, तुम छिपाते हो,
अपने दिल की आवाज़ को दबाते हो।

दूसरों की खुशी को अपना कर्तव्य मानते हो,
लेकिन अपनी खुशियों को किनारे लगा देते हो।
हर पल सोचते हो, "क्या वे खुश हैं?"
पर कभी नहीं पूछते, "क्या मैं खुश हूँ?"

तुम जानते हो, सच बोलने से टकराव होगा,
पर क्या कभी सोचा, सच को दबाने से खुद से टकराव होगा?
यह डर है जो तुम्हें चुप कराता है,
यह डर है जो तुम्हें अपनी पहचान छुपाने पर मजबूर करता है।

"ना" कहने से डरते हो, "हां" में फंस जाते हो,
पर क्या यह सच्ची दया है, या केवल डर का पालन करते हो?
तुम खुद को खोकर दूसरों को समझते हो,
लेकिन क्या कभी खुद से पूछा, "मैं कौन हूँ?"

यह जो "बहुत अच्छा बनना" है,
यह डर की एक परत है, जो तुम्हारे भीतर समाई है।
यह डर नहीं, आत्म-समर्पण है जो चाहिए,
अपने अधिकारों को जानो, और अपने सत्य को जीने का हौसला बढ़ाओ।

अब समय है खुद से सच्चा होने का,
अपने भीतर की आवाज़ को सुनने का।
"बहुत अच्छा बनना" छोड़, खुद को पहचानो,
और अपने सत्य से दुनिया को रौशन करो।


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