बहुत अच्छा बनना" – डर की परतें

"

कभी सोचा है क्यों हर बार माफी मांगते हो,
जब तुम्हारा कोई दोष नहीं, फिर भी झुकते हो?
क्यों हर बार सबकी खुशी में खो जाते हो,
अपनी चाहतों को अनदेखा कर देते हो?

यह जो "बहुत अच्छा बनना" है,
क्या यह सच में दया है, या डर का खेल है?
हर बार "सॉरी" कहते हुए, तुम छिपाते हो,
अपने दिल की आवाज़ को दबाते हो।

दूसरों की खुशी को अपना कर्तव्य मानते हो,
लेकिन अपनी खुशियों को किनारे लगा देते हो।
हर पल सोचते हो, "क्या वे खुश हैं?"
पर कभी नहीं पूछते, "क्या मैं खुश हूँ?"

तुम जानते हो, सच बोलने से टकराव होगा,
पर क्या कभी सोचा, सच को दबाने से खुद से टकराव होगा?
यह डर है जो तुम्हें चुप कराता है,
यह डर है जो तुम्हें अपनी पहचान छुपाने पर मजबूर करता है।

"ना" कहने से डरते हो, "हां" में फंस जाते हो,
पर क्या यह सच्ची दया है, या केवल डर का पालन करते हो?
तुम खुद को खोकर दूसरों को समझते हो,
लेकिन क्या कभी खुद से पूछा, "मैं कौन हूँ?"

यह जो "बहुत अच्छा बनना" है,
यह डर की एक परत है, जो तुम्हारे भीतर समाई है।
यह डर नहीं, आत्म-समर्पण है जो चाहिए,
अपने अधिकारों को जानो, और अपने सत्य को जीने का हौसला बढ़ाओ।

अब समय है खुद से सच्चा होने का,
अपने भीतर की आवाज़ को सुनने का।
"बहुत अच्छा बनना" छोड़, खुद को पहचानो,
और अपने सत्य से दुनिया को रौशन करो।


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