स्वस्थ सीमा की आवश्यकता


मैं जानता हूँ, जीवन में एक सीमा बनानी चाहिए,
जो मुझे खुद से जोड़े रखे, हर रिश्ते में संतुलन बनाए।
कभी भी, किसी के भी सामने,
मैं अपनी पहचान और आत्मसम्मान से समझौता नहीं करूँगा।

मैं कभी नहीं भूलता, खुद को खोकर रिश्तों में नहीं समाना,
स्वस्थ सीमा से ही मैं प्यार और सम्मान को बनाए रख सकता हूँ।
किसी का दबाव या अपेक्षाएँ न हों,
मेरी असली ताकत मेरी सीमाओं को समझने में छिपी है।

सम्बंध चाहे जैसे भी हों, मुझे खड़ा रहना है,
अपनी पहचान से सच्चा रहकर, मुझे कभी नहीं झुकना है।
कभी भी, किसी भी स्थिति में,
स्वस्थ सीमा बनाए रखना ही मेरा कर्तव्य है।

यह कोई अहंकार नहीं, न ही हृदय की कठोरता है,
बल्कि आत्म-सम्मान का संकेत, खुद को गहरे सम्मान से जीने का तरीका है।
क्योंकि जब मेरी सीमा स्वस्थ होती है,
तब मैं किसी भी रिश्ते में सच्चाई और प्यार को संजो सकता हूँ।


आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...