फ्लॉज



मैंने देखा, मेरे अंदर जो असुरक्षाएँ थीं,
वे अब बदल चुकी हैं,
जो कभी मेरी कमजोरी बनती थीं,
अब वे मेरे लिए एक नई राह बन चुकी हैं।

पहले मुझे यह डर था,
क्या मैं पर्याप्त समझदार दिखता हूँ?
क्या मैं दूसरों के लिए उतना विचारशील हूँ?
क्या मेरी असावधानी मुझे असफल बना देगी?

कभी मुझे चिंता थी,
क्या लोग मेरी बातों को समझ पाते हैं?
क्या मेरी मंशा को वो गलत समझते हैं?
क्या मैं अपने व्यवहार को सही से व्यक्त कर पाता हूँ?

और फिर, क्या मैं दूसरों की भावनाओं को पढ़ पाता हूँ?
उनकी आँखों में छुपे विचार,
क्या मैं उनकी असमंजस को समझ सकता हूँ?

लेकिन अब, मैंने देखा,
यह सारी असुरक्षाएँ उतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं।
जो कल मुझे घेरती थीं,
वे आज मुझे परिभाषित नहीं करतीं।

अब मैं खुद को वैसे ही स्वीकार करता हूँ,
जैसा मैं हूँ,
अपनी कमियों और असुरक्षाओं के साथ,
क्योंकि मैं जानता हूँ,
हर असुरक्षा के पीछे एक अवसर है,
अपने आप को और बेहतर समझने का।


नैतिकता और आदत



नैतिकता और आदत का संग्राम,
खुद से खुद की है ये जंग अनाम।

फैसले मजबूरी के, आदतों के आधार,
स्वतंत्रता की पुकार, होती बार-बार।

आदतें मजबूर, जकड़ें हमें बेड़ियों में,
नैतिकता की राह, चमके चाँद-तारों में।

मन में उठती लहरें, विचारों का तूफान,
आदतों से बंधे, नैतिकता का अरमान।

हर कदम पर संघर्ष, हर सोच में द्वंद्व,
खुद से खुद की लड़ाई, अनवरत अनंत।

मजबूर आदतों की जंजीरों को तोड़ो,
नैतिकता की राह पर साहस से चलो।

खुद की जीत में छुपा है जीवन का सार,
आदतों से उबर, नैतिकता का विस्तार।

स्वतंत्रता की गूंज, नैतिकता की बुनियाद,
खुद से खुद की लड़ाई, जीवन की मिसाल।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...