देवों से वार्ता करूँ, जब छू लूँ ध्यान की गहराई,
मंत्रों के स्वरों में बसी हो ब्रह्म की सच्चाई।
"त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।"
हर कोने में जो है बसता, वह परमात्मा है मेरा।
पेड़ों के पत्तों संग बातें, उनकी सांसों की कहानी,
जड़ों से आती धरा की ध्वनि, है सृष्टि की जुबानी।
"पृणन्तु मातरः सृष्टं लोकं,
हरिं पुष्पैः समर्पयन्तु।"
धरती की ममता में घुलता, हर प्राणी का जीवन रस।
समुद्र की गहराईयों में, जब व्हेल गाती गान,
उनकी धुन से बंधे हैं, लहरों के मीठे प्राण।
जलपरियों के सपने में, दिखे वह नीला आकाश,
सागर की कहानियों में, छुपा प्रकृति का विश्वास।
कीटों की फुसफुसाहट, वह मधुर संगीत सुनाती,
आकाश में तितली उड़ती, जीवन का अर्थ बताती।
"सर्वं खल्विदं ब्रह्म, तज्जलानिति शान्तः।"
हर अणु में है ब्रह्म समाया, यही सत्य सिखाती।
मनुष्य के शब्दों से दूर, आत्मा की खोज में जाती,
जो मौन में बसे उत्तर, वही शाश्वत सुख दे पाती।
मेरा संवाद है उस जग से, जो आँखों से दिखे नहीं,
देव, प्रकृति, और आत्मा का, है यह सजीव कही।
"यत्र विश्वं भवत्येकनीडं,
तत्र मे मनः शान्ति मुपैति।"
जहाँ सृष्टि एक हो जाती, वहीं आत्मा को शांति मिलती।