एक बार की बात

क बार कि बात

एक बार कि बात है ये

एक फूल पसंद आया था हमे

पसंद भी क्या पतझड़ भरे

मौसम में एक मासूम काली थी वो ,

उस कली को खिलाकर पाने चाहत कि हमने

मगर उस फूल पर एक भँवरा बैठा गया

और फूल भी उसी का हो गया 

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...