एक बार की बात

क बार कि बात

एक बार कि बात है ये

एक फूल पसंद आया था हमे

पसंद भी क्या पतझड़ भरे

मौसम में एक मासूम काली थी वो ,

उस कली को खिलाकर पाने चाहत कि हमने

मगर उस फूल पर एक भँवरा बैठा गया

और फूल भी उसी का हो गया 

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