नींद की मृदु चादर में लिपटा सवेरा

नींद की मृदु चादर में लिपटा सवेरा,
पर नयन मेरे जागे, अधूरा सपना घेरा।
सितारों की स्याह चादर, चाँदनी की रोशनी,
नींद न आई फिर भी, दिल में बसी तन्हाई।

रात का सन्नाटा, पत्तों की सरसराहट,
ख्वाबों की दुनिया में, कोई न था साथ।
पलकों की चुप्पी, मन का शोर,
अधूरी चाहतें, दिल की न कोई डोर।

नींद का न आना, जैसे एक अनबुझी प्यास,
हर पल बीतता, पर न कम होती आस।
तारों की बातें, चाँद का मुस्काना,
पर न आया वो सुकून, जो नींद में है बसा।

उजाला हुआ, पर आँखें थकी,
रात की वो चुप्पी, दिल में कहीं बसी।
सपनों का सूना पिटारा, अधूरी ख्वाहिशों का बोझ,
नींद न आई, और दिल ने महसूस किया रोज।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...