मजबूत काया कोई उपहार नहीं,
यह तपस्या है, जो हर पल लिखी जाती है।
नियमों का पालन, निरंतर प्रयास,
यह सरल नहीं, पर यही तो है विजय का इतिहास।
"सत्यं तपसा तप्यते,"
सच तप से ही प्रकट होता है।
स्वयं पर विश्वास, आत्मसम्मान का दीप,
हर रोज़ जलता है भीतर की सीख।
साहस चाहिए, डर को हराने का,
दृढ़ निश्चय, हार को भूलाने का।
अनुकूलन, हर परिस्थिति से लड़ने का,
और सहनशक्ति, असफलताओं से उभरने का।
यह एक विनम्रता का सफर है,
जहाँ अहंकार का कोई स्थान नहीं।
दर्द और कष्ट का आलिंगन करना,
यही तो है सच्ची यात्रा का गहना।
स्वीकृति चाहिए, अपने सीमाओं की,
और नए मानक गढ़ने की हिम्मत।
हर नई सुबह एक नया अवसर,
आशा का दीपक जलाता है निरंतर।
जब कोई काया को सुदृढ़ देखता है,
तो दिखता है भीतर का संघर्ष।
सम्मान उनके गुणों का होता है,
जो कड़ी मेहनत और संकल्प से सजता है।
सुदृढ़ शरीर केवल मांसपेशी नहीं,
यह आत्मा का प्रतिबिंब है।
यह दिखाता है संघर्ष और आशा का मेल,
जो इंसान को बनाता है महान और विशेष।