प्रस्तावना
जब धरती काँपती है, तो केवल ज़मीन नहीं, जीवन भी हिल जाता है। भूकंप (Earthquake) केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि यह पृथ्वी के भीतर छुपी हुई हलचलों की अभिव्यक्ति है। भारत, विशेषकर हिमालयी क्षेत्र और महाराष्ट्र जैसे राज्य, भूकंप संभावित क्षेत्रों में आते हैं।
मेरे लिए यह विषय और भी व्यक्तिगत है क्योंकि मेरा जन्मस्थान उत्तरकाशी ज़िले का गणेशपुर गाँव है, जहाँ 1991 में एक भीषण भूकंप आया था। उस भूकंप में मेरे गाँव में 51 लोग मारे गए थे— यह हादसा आज भी हमारे घरों की रातों में बातों का हिस्सा है। जब कोई नई पीढ़ी पूछती है, “क्या हुआ था उस रात?” तो जवाब में केवल शब्द नहीं, आंखें भी भीग जाती हैं। और अजीब इत्तफाक है कि मेरा जन्म भी उसी वर्ष हुआ था—1991 में। मेरे जन्म के साथ ही यह त्रासदी हमारे पारिवारिक इतिहास का हिस्सा बन गई।
अब मैं मुंबई में रहता हूँ—एक ऐसा महानगर जो एक अलग प्रकार के भूगर्भीय जोखिम से घिरा है। साल 2015 की बात करें, तो नेपाल में 25 अप्रैल को आए 7.8 तीव्रता के भूकंप ने भारत समेत पूरे हिमालयी क्षेत्र को झकझोर दिया था। इस भूकंप में नेपाल में लगभग 9000 लोगों की मृत्यु हुई थी और भारत के उत्तर भाग में भी इसका असर महसूस किया गया था।
आइए इस लेख में भूकंप को वैज्ञानिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करें।
---
भूकंप क्या है और यह क्यों आता है?
भूकंप वह प्रक्रिया है जिसमें पृथ्वी की सतह अचानक हिलती है। इसका कारण होता है पृथ्वी के भीतर स्थित टेक्टोनिक प्लेट्स (Tectonic Plates) का हिलना। ये प्लेट्स बहुत धीमी गति से खिसकती हैं, लेकिन जब इनकी गति बाधित होती है तो ऊर्जा एकत्रित होती रहती है। जब यह ऊर्जा अचानक मुक्त होती है, तो वह भूकंप के रूप में धरती की सतह को हिला देती है।
भूकंप के मुख्य कारण:
1. टेक्टोनिक प्लेट्स का टकराव या अलग होना
2. ज्वालामुखी विस्फोट
3. सागर की गहराइयों में हलचल
4. मानवीय गतिविधियाँ (जैसे खनन, बड़े बांध, भूमिगत परीक्षण)
उत्तरकाशी (1991): एक व्यक्तिगत त्रासदी
20 अक्टूबर 1991 की रात उत्तरकाशी में एक विनाशकारी भूकंप आया था जिसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6.8 मापी गई। 768 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई और हजारों घर ध्वस्त हो गए। गणेशपुर गाँव में अकेले 51 लोगों की जान गई। मेरे पड़ोस में कई घर उजड़ गए। एक बच्ची जो मेरी उम्र की थी—वह भी उस हादसे में हमसे बिछड़ गई। यह केवल आँकड़ों की त्रासदी नहीं थी, यह हमारे गाँव की आत्मा में दरार थी।
---
मुंबई: एक गहरी चुप्पी वाला खतरा
मुंबई, जहाँ मैं वर्तमान में निवास करता हूँ, भले ही हिमालय जैसा उच्च जोखिम क्षेत्र न हो, फिर भी यह Seismic Zone III में आता है, जो मध्यम खतरे वाला क्षेत्र है। मुंबई के पास Panvel Fault Line जैसी सक्रिय भूगर्भीय दरारें हैं। यहाँ की इमारतें, घनी आबादी, तटीय स्थिति और ऊँची-ऊँची इमारतें इसे संवेदनशील बनाती हैं।
इतिहास में:
26 मई 1618: एक प्रचंड भूकंप से हजारों लोगों की मौत हुई थी।
16 फरवरी 1967: खंबाट तट पर 6.5 तीव्रता का भूकंप।
25 जुलाई 2014: मुंबई से 100 किमी दूर 4.8 तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया।
आज मुंबई में 50, 70, 100 मंज़िल की इमारतें खड़ी हो रही हैं लेकिन बहुत कम जगहों पर भूकंप सुरक्षा को लेकर कोई सुनिश्चित उपाय किए गए हैं। यदि समुद्र के नीचे कोई तीव्र भूकंप आता है तो सुनामी का भी खतरा है।
महाराष्ट्र के अन्य भूकंप
1967 - कोयना भूकंप: 6.6 तीव्रता, 177 मृत। यह भूकंप कोयना डैम के जलभराव से जुड़ा माना गया।
1993 - लातूर भूकंप: 6.2 तीव्रता, लगभग 10,000 लोग प्रभावित। यह एक अनपेक्षित क्षेत्र में आया था, जिसने यह सिखाया कि कहीं भी खतरा हो सकता है।
भारत और विश्व में प्रमुख भूकंप
भारत:
1905 - कांगड़ा (हिमाचल): 7.8 तीव्रता, 20,000 मौतें
1934 - बिहार-नेपाल: 8.0 तीव्रता, 10,000+ मौतें
2001 - गुजरात (भुज): 7.7 तीव्रता, 20,000 से अधिक मौतें
2015 - नेपाल-भारत: 7.8 तीव्रता, 9,000 से अधिक मौतें
विश्व:
2004 - इंडोनेशिया सूनामी भूकंप: 9.1 तीव्रता, 2 लाख से अधिक मौतें
2010 - हैती: 7.0 तीव्रता, 2 लाख मौतें
2011 - जापान (टोहोकु): 9.0 तीव्रता, परमाणु संकट
हिमालय और सागर: दोनों खतरनाक रेखाएँ
हिमालय क्षेत्र भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के टकराव का क्षेत्र है। हर साल ये प्लेटें कुछ मिलीमीटर पास आती हैं, और इसके परिणामस्वरूप ऊर्जा जमा होती रहती है जो किसी भी समय बड़ी तबाही का रूप ले सकती है।
समुद्री इलाकों में प्लेट्स के खिसकने से पानी की सतह पर उभार आता है, जो सुनामी में बदल सकता है। 2004 की सुनामी इसका उदाहरण है। भारत के पूर्वी और पश्चिमी तट भी इस दृष्टि से संवेदनशील हैं।
बांध, इन्फ्रास्ट्रक्चर और भविष्य का खतरा
आज भारत में अनेक बड़े बांध हैं, जिनमें से टिहरी डैम का ज़िक्र किया जाना आवश्यक है। वैज्ञानिकों और भूगर्भशास्त्रियों का मानना है कि यदि किसी तीव्र भूकंप के कारण यह बांध टूटा, तो उत्तराखंड ही नहीं, पूरे उत्तर भारत का बड़ा हिस्सा बाढ़ में डूब सकता है। गंगा जहां-जहां जाती है, वहां तबाही संभव है।
बढ़ती आबादी के कारण शहरों में 50-100 मंज़िल की इमारतें बन रही हैं, लेकिन उनमें से कई भवन भूकंपरोधी तकनीकों का पर्याप्त पालन नहीं कर रहे।
प्राचीन ग्रंथों में भूकंप का वर्णन
भारतीय ग्रंथों में भूकंप को 'भूमि कम्पन' कहा गया है। पुराणों में इसे पृथ्वी की पीड़ा कहा गया है।
ब्रह्माण्ड पुराण में उल्लेख है: "पृथिव्याः कम्पनं घोरं, दोषैः प्रजासमुद्भवम्।"
(अर्थ: पृथ्वी का भयंकर कंपन, प्रजा के अधर्म और असंतुलन से उत्पन्न होता है।)
यह संकेत करता है कि प्राचीन काल में भी यह समझ थी कि जब प्रकृति और मानव में संतुलन बिगड़ता है, तब पृथ्वी प्रतिक्रिया करती है।
मानवता कैसे बचे? उपाय और तैयारी
1. भवन निर्माण के नियमों का पालन: IS 1893 और IS 4326 जैसे कोड्स का पालन अनिवार्य
2. आपदा प्रबंधन की शिक्षा: स्कूलों, दफ्तरों में ड्रिल, जागरूकता
3. प्राकृतिक चेतावनी प्रणालियाँ: अर्ली वॉर्निंग सिस्टम का विकास
4. स्थानीय जागरूकता: नागरिकों को शिक्षित करना कि भूकंप के समय क्या करें
5. भवनों की जाँच और रेट्रोफिटिंग: विशेषकर पुराने और ऊँचे भवनों की मजबूती बढ़ाना
6. बांधों और समुद्री तटों की निगरानी: वैज्ञानिकों की सतत निगरानी और समय रहते चेतावनी
निष्कर्ष
भूकंप एक प्राकृतिक सत्य है, लेकिन इससे होने वाले विनाश को मानवीय बुद्धिमत्ता से कम किया जा सकता है। उत्तरकाशी से लेकर मुंबई, हिमालय से लेकर समुद्र तक, हमें अपने पर्यावरण को समझकर उसके अनुरूप जीवन शैली और संरचनाएँ विकसित करनी होंगी।
यह केवल विज्ञान नहीं, चेतना, ज़िम्मेदारी और भविष्य के प्रति समर्पण का विषय है।
संदर्भ:
https://earthquakelist.org/
https://www.magicbricks.com/blog/can-mumbai-survive-an-earthquake/81264.html
https://en.wikipedia.org/wiki/1991_Uttarkashi_earthquake
https://bmtpc.org (Vulnerability Atlas of India)
https://ndma.gov.in
https://en.wikipedia.org/wiki/April_2015_Nepal_earthquake
ब्रह्माण्ड पुराण
(लेखक: दीपक डोभाल, उत्तरकाशी निवासी, वर्तमान में मुंबई में कार्यरत लेखक, पटकथा लेखक व फिल्म निर्माता)