व्लादिमीर इलिच लेनिन: "क्या करना चाहिए?" - एक विस्तृत विश्लेषण



व्लादिमीर इलिच लेनिन का लेख *"क्या करना चाहिए?"* (What Is To Be Done?) 1902 में प्रकाशित हुआ था और यह लेख रूस के समाजवादी आंदोलन के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है। इस लेख में लेनिन ने न केवल रूस में साम्यवादी क्रांति के लिए एक स्पष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, बल्कि उन्होंने यह भी दिखाया कि कैसे सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष को समन्वित किया जा सकता है ताकि वह एक सशक्त, क्रांतिकारी आन्दोलन में परिणत हो। इस लेख ने रूसी समाजवादी आंदोलन को एक नई दिशा दी और यह साम्यवादी विचारधारा के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देशों का स्रोत बना।

आइए, हम इस महत्वपूर्ण लेख का विश्लेषण करें और देखें कि लेनिन ने "क्या करना चाहिए?" में किस तरह की सामाजिक, राजनीतिक और क्रांतिकारी रणनीतियों को प्रस्तुत किया।

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#### **भाग 1: समाजवादी आंदोलन की शुरुआत और संघर्ष की आवश्यकता**

**लेनिन का दृष्टिकोण और ऐतिहासिक संदर्भ**

लेनिन ने यह स्पष्ट किया कि साम्यवादी आंदोलन केवल एक आर्थिक आंदोलन नहीं होना चाहिए, बल्कि यह एक राजनीतिक और सांस्कृतिक आंदोलन भी होना चाहिए। उन्होंने इसे एक क्रांतिकारी संघर्ष के रूप में देखा, जिसमें न केवल श्रमिक वर्ग की स्थिति में सुधार लाने के लिए काम किया जाना चाहिए, बल्कि पूंजीवाद और सर्वहारा के शोषण के खिलाफ एक व्यापक संघर्ष की आवश्यकता है।

लेनिन का यह विचार था कि रूस में समाजवादी आंदोलन की शुरुआत केवल आर्थिक सुधारों से नहीं हो सकती थी। उन्हें यह मान्यता थी कि रूस के श्रमिक वर्ग का संघर्ष केवल वेतन वृद्धि और बेहतर कार्य स्थितियों तक सीमित नहीं रह सकता। इसके लिए राजनीतिक आंदोलन की आवश्यकता थी। उन्होंने इस पर जोर दिया कि, "राजनीतिक स्वतंत्रता" और "क्रांति" का उद्देश्य केवल वर्ग संघर्ष को तेज करना नहीं था, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कार्य था।

**साम्यवादी सिद्धांत का प्रसार**

लेनिन के अनुसार, साम्यवादी सिद्धांत का प्रसार करना आवश्यक था, ताकि लोग इस सिद्धांत को न केवल समझ सकें बल्कि इसे अपने जीवन में लागू भी कर सकें। लेनिन ने महसूस किया कि रूस में एक सामाजिक जागृति की आवश्यकता है। वे मानते थे कि केवल श्रमिक वर्ग की जागरूकता से ही क्रांति संभव हो सकती थी, और इसके लिए आवश्यक था कि श्रमिक वर्ग को शिक्षित किया जाए और उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाए।

उन्होंने कहा कि यह कार्य केवल कार्यकर्ता वर्ग के बीच नहीं, बल्कि पूरे समाज में फैलने चाहिए। इसके लिए "साम्यवादी युवाओं" और "सामाजिक कार्यकर्ताओं" को एकत्रित करने की आवश्यकता थी, जो इस क्रांतिकारी संघर्ष में सक्रिय रूप से शामिल हों। 

**लेनिन का दृष्टिकोण: समाजवादी सिद्धांत और व्यावहारिक राजनीति**

लेनिन के अनुसार, "समाजवादी सिद्धांत" केवल एक वैचारिक और सिद्धांतिक स्थिति नहीं हो सकती। यह एक क्रांतिकारी गतिविधि का रूप लेना चाहिए था। वह मानते थे कि समाजवादी आंदोलन को केवल "सिद्धांतों" तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि यह एक व्यावहारिक, वास्तविक और गतिशील आंदोलन होना चाहिए। लेनिन के लिए यह जरूरी था कि समाजवादी आंदोलन और क्रांतिकारी संघर्ष समाज की वास्तविक स्थितियों के आधार पर उभरे, और इसे कार्यकर्ताओं द्वारा संप्रेषित किया जाए।

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#### **भाग 2: संघर्ष की दिशा और पार्टी संगठन की आवश्यकता**

**एक क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण**

लेनिन ने *"क्या करना चाहिए?"* में स्पष्ट रूप से बताया कि क्रांतिकारी संघर्ष को एक ठोस और संगठित रूप देने के लिए एक मजबूत क्रांतिकारी पार्टी की आवश्यकता है। इस पार्टी का उद्देश्य था, सर्वहारा वर्ग की तानाशाही की स्थापना और बौद्धिक और राजनीतिक रूप से तैयार एक "पार्टी अवांगार्ड" का गठन। 

लेनिन ने यह कहा कि रूस में समाजवादी आंदोलन के लिए एक ठोस विचारधारात्मक नेतृत्व की आवश्यकता थी। पार्टी को केवल सिद्धांतों से नहीं, बल्कि व्यावहारिक अनुभव और संघर्ष के आधार पर तैयार किया जाना चाहिए। पार्टी का एक मुख्य कार्य यह था कि वह मजदूरों के बीच अपने विचारों को फैलाए, उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करे, और उन्हें वर्ग संघर्ष में भाग लेने के लिए प्रेरित करे।

उन्होंने कहा, "यह सिर्फ एक विचारधारात्मक आंदोलन नहीं है, बल्कि एक व्यवस्थित और सुसंगत क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण भी है, जो राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष को एक दिशा दे सके।"

**पार्टी और वर्ग संघर्ष**

लेनिन के अनुसार, पार्टी का काम केवल सिद्धांतों को फैलाने तक सीमित नहीं था, बल्कि उसे यह भी सुनिश्चित करना था कि मजदूर वर्ग के बीच एक क्रांतिकारी चेतना जागृत हो और एक संगठित संघर्ष खड़ा किया जाए। पार्टी के सदस्यों को एकजुट करना और एक आम उद्देश्य के तहत संघर्ष को तेज करना, यह पार्टी का प्रमुख कार्य था। 

लेनिन का यह विश्वास था कि बिना एक मजबूत क्रांतिकारी पार्टी के, कोई भी समाजवादी आंदोलन लंबे समय तक नहीं टिक सकता। पार्टी का कार्य सिर्फ "श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा" करना नहीं था, बल्कि यह "क्रांतिकारी दिशा" तय करना भी था, ताकि समाजवादी क्रांति को सही दिशा मिल सके।

**राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष का एकीकरण**

लेनिन ने यह भी बताया कि समाजवादी आंदोलन को केवल आर्थिक स्तर पर काम नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे राजनीतिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी सक्रिय होना चाहिए। उन्हें यह मान्यता थी कि समाज की सभी समस्याओं का समाधान केवल श्रमिकों के संघर्ष से नहीं हो सकता, बल्कि इसके लिए समग्र समाज को जागरूक करने और एकीकृत संघर्ष करने की आवश्यकता है। इस दृष्टिकोण को उन्होंने "सामाजिक जागृति" कहा, जिसके तहत हर वर्ग और हर समुदाय को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक किया गया।

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लेनिन का लेख *"क्या करना चाहिए?"* न केवल एक विचारधारात्मक दस्तावेज था, बल्कि यह एक गहरी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी था। इसमें उन्होंने न केवल रूस में एक क्रांतिकारी आंदोलन के लिए दिशा-निर्देश दिए, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि समाजवादी आंदोलन केवल सिद्धांतों और विचारों से नहीं चलता, बल्कि इसके लिए एक संगठित क्रांतिकारी पार्टी और समाज में जागरूकता का होना जरूरी है। 

लेनिन का यह दृष्टिकोण आज भी कम्युनिस्ट आंदोलनों और राजनीतिक संघर्षों के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ बना हुआ है। यह सिद्धांत आज भी विभिन्न देशों में साम्यवादी संघर्षों और विचारधाराओं के लिए मार्गदर्शक बनता है, और यह दर्शाता है कि क्रांतिकारी आंदोलन को केवल विचारों और सिद्धांतों से नहीं, बल्कि सशक्त और संगठित संघर्ष से आगे बढ़ाना होता है।

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क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...