असहज सत्य है, पर सत्य यही,
सुदृढ़ काया से मिलती है गरिमा कहीं।
दुनिया का नजरिया बदल जाता है,
जब तन सुडौल और आकर्षक नजर आता है।
"शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्,"
तन ही है पहला साधन धर्म का।
मजबूत काया से झलकती है शक्ति,
जो बांध लेती है मन को अनायास भक्ति।
स्वास्थ्य के साथ आता है आत्मविश्वास,
और वही बनता है सम्मान का आधार।
लोग सुनते हैं जब दिखती है काया निरोग,
वरना उपेक्षित हो जाते हैं शब्द मधुर-संयोग।
यह दुनिया सतह पर ही देखती है,
अंदर के सत्य को अनदेखा करती है।
पर क्या दोष दें इसे पूरी तरह,
जब शरीर ही आत्मा का पहला घर।
मगर याद रहे, यह मात्र एक आयाम है,
मानवता का तो गहरा संग्राम है।
सिर्फ़ दिखावे से ना बने पहचान,
पर तन के संग मन का भी हो सम्मान।
तो सुदृढ़ बनाओ न केवल शरीर,
बल्कि विचार, आत्मा और चरित्र को गम्भीर।
क्योंकि असली सम्मान तो वहीं मिलता है,
जहाँ तन और मन दोनों खिलता है।