मैंने उठाया है तुम्हारे सपनों का आकाश अपनी हथेली पर,
तुम्हारी आँखों के तारे मेरे नक़्शे का दिशा-निर्देश बन गए।
जो बातें तुम्हारे दिल में दबी थीं, ग़ुबार की तरह,
मैंने उन्हें सींचा—अपनी साँसों की नमी से फूल बना दिया।
तुम्हारी चुप्पी के टुकड़े मैंने समुद्र किनारे चुने,
हर शिकन, हर सिसकी को मोती की तरह पिरोया।
तुम्हारे डर की छाया को मैंने अपने कंधे पर बिठाया,
वो जो तुम्हें खोखला करती थी, मेरी हड्डियों में उतर गई।
तुम्हारी नदी का हर पत्थर मेरी आँखों में बसा है,
तुम्हारी लड़ाई की आग मेरे ख़्वाबों की रोशनी बनी।
जब तुम्हारे पैरों ने रेत में रास्ता खोया,
मैंने अपनी हथेली को पुल बना दिया—चुपचाप, बिना गर्व के।
तुम्हारी हँसी के पीछे छिपी वो टूटी सी आवाज़,
मैंने उसे सुना, जब सारा संसार ताली बजा रहा था।
तुम्हारे ग़ुस्से की चिंगारी को मैंने अपने सीने में रखा,
जलता रहा वो कोयला... पर तुम्हारे हाथ ठंडे रहे।
क्या तुम जानते हो?
तुम्हारे प्यार के लिए जो लड़ाई तुम लड़ते हो,
मेरी नसों में वही खून बनकर दौड़ती है—
तुम्हारी ज़िद का एक पल, मेरी सदी का इतिहास बन जाता है।
मैं तुम्हारे सुख के पन्नों को नहीं, दर्द के अक्षर पढ़ता हूँ,
तुम्हारी खामोशी की कविता मेरी आवाज़ में गूँजती है।
तुम अगर अपनी धरती से उखड़ भी जाओ,
मेरी जड़ें तुम्हारी मिट्टी में इतनी गहरी हैं—हवा भी हिला नहीं सकती...
**विराम नहीं, ये सिलसिला है:**
तुम्हारी हर चीज़ मेरे लिए इबादत बन गई,
तुम्हारा "मैं" मेरे "हम" में खोया नहीं—बस फैल गया।