वेदांत दर्शन के अनुसार, सम्पूर्ण ब्रह्मांड एक अखण्ड एकत्व में व्याप्त है। यह अखंडता ही सृष्टि का आदिकारण है और सभी वस्तुओं का मूल शक्ति स्रोत है। संसार में विभिन्न जीवों, अजीव वस्तुओं और नैसर्गिक तत्वों के बीच कोई असमानता नहीं है, क्योंकि सभी एक ही ब्रह्मांड के अंग हैं।
**प्रश्नोपनिषद्** में दिया गया वर्णन इस अद्वितीय संगति को स्पष्ट करता है। यहां पुरुष के संपूर्ण शरीर से संबंधित सोलह कलाओं का वर्णन किया गया है, जिसमें जीवों से लेकर अजीव तत्व तक का समावेश है।
**स प्राणमसृजत प्राणाच्छ्रद्धां खं वायुर्ज्योतिरापः पृथ्वीवीन्द्रियं मनः अन्नमन्नाद्वीर्यं तपो मन्त्राः कर्मलोका लोकेषु च नाम च॥**
यह श्लोक सृष्टि के एकत्व को बताता है, जहां प्राण से लेकर लोकों तक का संबंध दिखाया गया है। इसके साथ ही, **आदि शंकराचार्य** के व्याख्यान में प्राण का अर्थ हिरण्यगर्भ, यानी समस्त प्राणों का संग्रह, और सभी जीवों के आंतरिक जीवन का ब्रह्म है।
इस प्रकार, सृष्टि का विचार हमें यह शिक्षा देता है कि हमें सभी प्राणियों, अजीव वस्तुओं और प्राकृतिक तत्वों का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि यह सभी ब्रह्मांड के एक ही अंश हैं और हम सभी उनके आदि रूप हैं।