धरती पर हर एक जीवन से,
मैं बंधा हूं गहरे धागों से।
देवताओं से, और प्रकृति से,
बात करता हूँ रोज़, अब और हर रोज़।
शिव से बात करता हूँ शांत चित्त,
गंगा से, जैसे बहती वो नदियाँ,
पानी के संग मैं बात करता हूँ,
उसकी गहराई में खो जाता हूँ।
वृक्षों से, पत्तों से, फूलों से,
सपने और साक्षात्कार की ऊँचाई से,
"आकाशात् परमं वयं" - आकाश की चुप्प से,
जो कहता है, सत्य को तुम साकार करो।
विलीन हो जाता हूँ जब व्हेल्स गाती हैं,
समुद्र की लहरों में आवाज़ें आती हैं।
"यथा दीपो निवातस्थो" - जैसे दीपक हवा में स्थिर,
वैसे ही मैं, आत्मा की गहराई में लहराता हूँ।
जलपरी से बात करता हूँ मैं गहरी ध्वनि में,
समुद्र की लहरों में, और उसके संगीत में।
कीटों से, जो चुपचाप हैं धरती पर,
हर कदम पर, हर श्वास में उनका भान है।
लेकिन जब बात आती है इंसानों से,
सिर्फ 5% पर सिमट कर रह जाती है।
उनकी आँखों में जो देखा, क्या समझ पाऊं मैं,
उनके शब्दों में जो खोया, क्या बोल पाऊं मैं?
"सर्वे भवन्तु सुखिनः" - सभी सुखी हों, यही कामना है,
पर दिल कहता है, वृहत्तम सत्य और भीतर की शांति चाहिए।
प्रकृति से, देवताओं से, आत्मा से संवाद,
मनुष्य से क्या, जब आत्मा का है संवाद?
हर जीव, हर प्राणी, एक संदेश देने वाला है,
प्रकृति में हर शोर, एक साक्षात्कार हो सकता है।
इंसान से मैं कम बातें करता हूँ,
पर सच्चाई से, और अपनी आत्मा से जीता हूँ।