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ना कह दे जो कोई, बुरा क्यों मानूं,
हर दिल की अपनी कहानी होती है।
मैं हूँ जो हूँ, यही काफी है,
मुझे ना चाहना भी मेहरबानी होती है।
नज़रें जो समझें बिना बदले,
वो ही तो असली अपनापन लाती हैं।
मैं नहीं चाहता वो रिश्ते,
जो शर्तों में सांसें गिनवाती हैं।
जो मुझे न चुन पाए, रुक जाए वहीं,
कृपा है उसकी, जो राहें अलग हुईं।
मैं अब उन्हीं को चाहता हूँ,
जो मेरे साथ हों, मेरी तरह हुईं।
हर ‘ना’ एक ‘हाँ’ की सीढ़ी है,
हर दूरी में भी इक राज़ छिपा है।
इंकार भी एक इनायत है,
क्योंकि जो गया, वो मेरा ना था।
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