प्रेम या धोखा

?

हर शब्द पर विश्वास किया,
हर झूठ को भी सच माना।
सात जन्मों का वादा था,
फिर क्यूँ यह रिश्ता बेगाना?

कसमों में अमर प्रेम था,
अब दस्तावेज़ों में बंट रहा है।
जो कहा था— "हमेशा साथ रहेंगे",
अब बिछड़ने का हक़ जता रहा है।

जहाँ जन्मों का बंधन होता,
वहाँ जुदाई का प्रश्न नहीं।
किन्तु जहाँ प्रेम व्यापार बने,
वहाँ वचन का मूल्य नहीं।

संस्कारों की भूमि पर,
संबंध सदा निभाए जाते।
पर जब प्रेम समझौता बन जाए,
तो बंधन भी टूट ही जाते।

— दीपक दोभाल



आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...